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अचौर्य-अणुव्रत बृहत् जैन शब्दार्णव
अचौर्यअणत करने वाले को सदैव बचना चाहिये :- (५) प्रतिरूपक व्यवहार या प्रतिरूपक(१) चौर-प्रयोग या सेन-प्रयोग--किसी व्यवति था कृत्रिम व्यवहार--बहुमूल्य की को चोरी करने के उपाय आदि बताना या वस्तुमै उसी की सरश अल्प मूल्य का स्वयम् सीखना या चौर्य कर्म के लिये उओ- कोई वस्तु गुप्त रूपसे मिलाकर बहु मूल्यकी जना उत्पन्न कराने वाली कोई अनुमति वस्तु के भाव पेचना या नकली वस्तु को वा सहायता आदि देना या चौर कर्म के असलो या अधिया को लिया बताकर | साधन या सहायक पदार्थ ‘कमन्द' आदि पंचना, इत्यादि। बनाना, वेचना या मांगे देना, इत्यादि ॥ यह पाँचौ तथा इसी प्रकार के अन्य भी (२) चौरार्थदान या चौराहृत-ग्रह या ऐसे कार्य जो लोमादि वरा गुप्त रीति से तदाहतादान-चोरी का माल धरोहर र
या बलात् करने पड़े व सब चोरी ही का खना, या मोल लैना, या किसी अनजान रूपान्तर या उसके तिवार। याभोले मनुष्यादि से लोभ आदि कषायवश
(सागार० अ०४ोक ५०)। घहु मूल्य की वस्तु बहुत कम मूल्य में नोट --किसी ग्रहण कि हुए त का लैना या उत्कोच(अर्थात् घूस या रिशवत) एक अंश भंग होना अर्थात् अन्तरगया बहिलैना, इत्यादि ॥
रग इन दोनों में से किसी एक कार से भग (३) विरुद्धराज्यातिक्रम या विरुद्धराज्य- होना “अतिचार" या "अतीधार" दोष पाहध्यतिक्रमण--राजा की किसी आशा का
लाता है जिस से उस व्रत में शिथिलता और घोरी से उलङ्घन करना, राजस्व (राजा का कुछ असयंमपना आ जा । और अन्तरङ्ग नियत "कर" या महसूल ) चोरी से (गुप्त वहिरङ्ग दोनों प्रकार से जब कोई प्रत भंग हो रीति से ) न देना या कम दैना, राज भंग जाय तो वा "अनाचार' कहलाता है। होने पर नीति का उलंघन करके अनचित "अतिचार दोप" लगने में प्रतटने से बचने व्यापार करना, राजाज्ञा बिना अपने राजा के लिये चित्त में कुछ न कुछ भय बना रहता के विरोधी राज्य में जाना अर्थात् शत्र है पन्तु ."अनाचार” में हृदय में नियता राजा के राज्य में जाना, अपने राजा के आजाती है ।। शत्रुसे गुप्त रीति से मिलना या उसे किसी (सा. अ. ४, इलोक १८ मू गा. १०.६) प्रकार की सहायता देना, इत्यादि ॥ ___ इस "अचौर्याणवत'' को निल रमने . (५) हीनाधिक मानोन्मान या हीनाधिक | के लिये निम्न लिखित ५भावनाओं को भी मानतुला या मानोन्मानवपरीत्य या मानव- अवश्य ध्यान में रखना और हरदम उनके न्यूनताधिक्य-तोलने नापने के यार या अनुकूल प्रवर्तना चाहिये :--- गज आदि कम बढ़ रावना या ताखड़ी (३) शून्यागारवास--सुर्यसनी, तीव्र (तुला या तराज ) की डंडी में कान रखना
कषायी, भ्रष्टाचरणी मनुष्यों से शय स्थान | या उंडी मारकर तोलना जिससे गुप्त रूपमें
में निवास करने का सदा ध्यान रखना ॥ अपना माल कम दिया जाय और पराया | (२) विमोचितावास--किसी अन्य मनुमाल अधिक लिया जाय ॥
- प्य के झगड़े टंटे से रहित स्थान में निवास
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