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अचौर्य-महाव्रत वृहत् जैन शब्दार्णव
अचौर्य-महावत करने का सदैव विचार रखना ॥ | संयमोपकरण “पीछी", और शौचोपकरण (३) अपरोपरोधाकरण-किसी अन्य | 'कमंडल', यह तीन उपकरण ( साधन या मनुष्य के स्थान में जहाँ जाने की रोक टोक उपकारी पदार्थ ) धम्मो पकरण हैं ॥ हो बलात् प्रवेश न करने का सदैव ध्यान नोट२.-जो स्वयम् महान हैं, जिनके रहना।।
| ग्रहण करने से ग्रहण करने वाला व्यक्ति (४)आहार शुद्धि-न्यायोपार्जितधन महान हो जाता है अथवा जिन्हें महान शक्तिसे प्राप्त की हुई शुद्ध भोजन-सामग्री से बने वान पुन्यवान पुरुष ही धारण कर सको है हुए आहार को लोलुपता रहित सन्तोष तथा जिन का आचरण अत्यन्त पने संसार सहित ग्रहण करने का सदैव ध्यान रखना। की निवृति और मोक्ष महा-पद की प्राप्ति के ( ५ ) सधौविसंवाद-साधर्मी
लिये ही किया जाय उन्हें "महात्रत" कहते हैं। मनुष्यों से किसी वस्तु के सम्बन्ध में “यह इस अचौर्य महाव्रत के निम्न लिग्नित मेरी है यह तेरी है' इत्यादि कहन सुनन
५ अतिचार दोष है जो इस व्रत के पालक द्वारा कोई फलद विसंवाद आदि न रख मुनियों को बचाने चाहियेः-- कर परस्पर कार्य निकालने का सदा वि. (१) अयात्र-आचार्य आदि से चार रखना ॥
प्रार्थना पूर्वक आशा लिये बिना किसी
धर्मापकरण को ग्रहण करना या किसी भवौर्य-महानत-मुनि धर्म सम्बन्धी ५
अन्य साधर्मी मुनि के उपकरण को अपने महावतों में से तीसरा महावत, तथा २८
काम में लाना ॥ मूलगुणों में से एक मूलगुण जिस में स्थूल
(२) अननुज्ञापन-किसी अन्य मुनि और सूक्ष्म सर्व ही प्रकार की चोरी का,
के उपकरण को बिना उसकी अनुमति के अर्थात् विना दी हुई वस्तु ग्रहण करने का
अपने काम में लाना ॥ मन, बचन और फाय से कृत, कारित,
(३) अन्यथाभाव-धर्मोपकरणों या अनुमोदना युक्त पूर्णतयः त्याग किया
शिप्यादि में ममत्व भाव रखना ॥ जाता है।
(४) प्रति सेवा या त्यक्त सेघा-- इस व्रत को धारण करने वाले मुनि, आचार्यादि की यथार्थ सेवा से मन को ऋषि, साधु सर्व प्रकार के परिग्रह के अर्था- प्रतिकूल रखना अर्थात् सेवा से जी त् धन, धान्य, वस्त्र, फटम्ब आदि १० चुराना ॥ प्रकार के सर्व पदार्थों और क्रोध, मान, (५) अननुचिसेवन--अन्य किसी माया, लोभादि १४ प्रकार की सर्व कषायों साधर्मी मुनि के किसी उपकरण को उस के तथा निज पौद्गलिक शरीर तक से म- की अनुमति से लेकर योग्य रीति से काम ! मत्व भाव रखने के त्यागी होते हैं । अतः में न लाना ॥ धर्मोपकरण और भोजन के अतिरिक्त अन्य
. . (मू० गा० ३३६)। कोई वस्तु दी हुई भी ग्रहण नहीं करते ॥ इस अचौर्य-महाघ्रत को निर्मल रखने ___ नोट १.-ज्ञानोपकरण "शास्त्र" के लिये निम्न लिखित ५भाषनाओं को भी
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