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विमान' कहते हैं।
( १५४ ) अच्युत वृहत् जेन शब्दार्णव
अच्युत । प्राप्त जीवों ) का निवास स्थान नहीं है, विमान, और शेष दो विदिशा-आग्नेय, । किन्तु इसके ऊपर पौन महायोजन मुटाई की | | नैऋत्य-के ५७ प्रकीर्णक विमान, एवम् | घनोदधि वात और घनवात से ऊपर जाकर सर्व १६८ विमान हैं । इन्हीं १६८ विमानों के
जो १५७५ महा धनुष मोटी "तनुवात" है समूह का नाम “आरण'' स्वर्ग है जो १६ उसकी मुटाई का भी १५७३ १-महाधनुष स्वर्गों में १५वां है ।। मोटा नीचे का भाग छोड़ कर इस की मुटाई नोट ४.-तिर्यकरूप बराबर क्षेत्र में। के उपरिम शेष भाग १ महानुप(५२५
अर्थात् समधरातल में जहां जहां विमानों की। धनुष ) में अनन्तानन्त सिद्धौ ( मुक्त
रचना है उसे "प्रतर' या "पटल' कहते हैं । जीवों) का निवास स्थान है। यही "सिद्धा
____ हर पटल के मध्य के विमान को ‘इन्द्रक | लय” है। यह भी विस्तार में सिद्धक्षेत्र समान
हर इन्द्रक के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और ४५ लाख महा योजन प्रमाण व्यास युक्त वृत्ताकार है और उसी की ठीक सीध में उस
उत्तर, इन चारों दिशाओं के पंक्ति रूप विमानों
को “श्रेणीवद्ध" विमाम कहते हैं । के ऊपर कुछ कम एक महा योजन प्रमाण
चारों दिशाओं के मध्य के आग्नेय आदि अन्तराल छोड़कर है।
| ४ कोणों (विदिशाओं) में के अनुक्रम रहित नोट ३.-अच्युत स्वर्ग सम्वन्धी जो जहां तहां फैले हुए विमानों को प्रकीर्णक' उपयुक्त ३ पटल हैं उनमें से सबसे नीचे के विमान कहते हैं । पटल की उत्तर दिशा में श्रेणीवद्ध विमान नोट ५-१६ स्वर्गों के नाम यह है-(१) १३, इससे ऊपर के पटल की उत्तर दिशा में सौधर्म (२) ईशान (३) सनत्कुमार (४) महेन्द्र १२ और ससे ऊपर के तीसरे पटल की (५) ब्रह्म (६) ब्रह्मोत्तर (७) लान्तव () कापिष्ट उत्तर दिशा में ११ हैं, अर्थात् उत्तर दिशा के (९) शुक्र (१०), महाशुक्र (११) शतार (१.) सर्वश्रेणीबद्ध विमान ३६ ( हरिवंश पुगण सहस्त्रार (१३) आनत (१४) प्राणत (१५) में ३६) असंख्यात असंख्यात योजन विस्तार आरण (१६) अच्युत ।। के हैं । ओर वायव्य व ईशान कोणों के सर्व इन १६ स्वर्गों के ८ युगल (जोड़े) हैं। प्रकीर्णक विमान ५६ हैं जिनमें कुछ असंन्यात पहिले युगल सोधर्म ईशान में से सौधर्म की असंध्यात और कुल संख्यात संख्यात योजन | रचना दक्षिण दिशा को, और ईशान की रचविस्तार के हैं । अतः सर्व विमानों की संख्या ना उसकी बराबर ही में उत्तर दिशा को है। जिनमें अव्युमेन्द्र की आज्ञा प्रवर्तती है ६२ है। इस युगल को रचना जरबूद्वीप के मध्य स्थिइन तीनों पटलों में से प्रत्येक के मध्य में जो त सुदर्शन भेरु की चूलिका (चोटी ) से एक एक इन्द्रक विमान है उनमें आयुरेन्द्र का केवल एक बाल को मुटाई का अन्तर छोड़ आज्ञापन नहीं है किन्तु “आरणेन्द्र" का है | कर ऊपर की ओर को ३१ पटलो (खंडों, जिसकी आशा में यह तीनों इन्द्रक विमान | मंजिलों या दर्जी) में एक लाख और चालीस
और इन तीनों पटलों की शेष तीन दिशा- (१०००४०) महा योजन कम डेढ़ राजू प्रमाण पूर्व,दक्षिण और पश्चिम-के १०८ श्रेणीबद्ध | ऊँचाई में फैली हुई है। प्रत्येक पटल की|
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