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( १४४ ) अचितद्रव्यपूजा वृहत् जैन शब्दार्णव
अचितयोनि मेष्ठी की या षोडश-कारण-भावना, दश- | अवस्था में निगोद राशि सहित 'सप्रतिष्ठत लक्षण धर्म, रत्नत्रयधर्म, इत्यादि की अस. प्रत्येक ' होते हैं जिम में ( तीर्थर शरीर के द्भाव स्थापना पूजा अर्थात् अचित कमल- अतिरिक्त शेष में ) त्रस जीव भी आश्रय पाते गट्टा, सूखे पुष्प, अक्षत आदि अतदाकार | हैं। पवित्र अचित पदार्थों में उनकी कल्पना कर | (देखो शब्द 'अष्ट स्थाननिगोद रहित') उनका पूजन करना। ४. द्रव्यश्रत या - नोट ३-पूजन के सम्बन्ध में विशेष | जिनवाणी प्रतिपादित ग्रन्थों का पूजन ॥ बातें जानने के लिये देखो शब्द 'अर्चन' ॥ _ 'चितद्रव्य पूजा' का द्वितीय अर्थ अचितपरिग्रह-परिग्रह के मूल दो भेदों 'अचितद्रव्य से पूजा' ग्रहण करने से इस
(१) अन्तरङ्ग या अभ्यन्तर परिग्रह और में भी तीन विकल्प उत्पन्न होते हैं-(१) |
(२) वाह्यपरिग्रह में से “वाह्यपरिग्रह' के अचितद्रव्य से पूजा उपयुक्त अर्हन्त शरी
जो तीन विकल्प हैं अर्थात् (१) अचितरादि में से किसी अचितथ्य की (२)
परिग्रह (२) सचितपरिग्रह और (३) मिश्रअयितद्रव्य से पूजा सचितद्रव्य अर्थात् |
परिग्रह. इनमें से रुपया पैसा,सोना चांदी, 'साक्षात' अर्हन्तादि ( सिद्धों के अतिरिक्त)४ |
वर्तन वस्त्र, आदि 'अचितपरिग्रह' हैं । परमेष्ठी की अथवा सचित पुष्पादि द्वारा |
| देखो शब्द 'परिग्रह' ॥ असगाव स्थापना से परोक्षरूप पूजा प. चपरमेष्ठी आदि की (३) अचित द्रव्य से अचितफल-पीछे देखो शब्द 'अचितपूजा मिश्रद्रव्य अर्थात् अष्ट प्रातिहार्य आदि द्रव्य' और उसका नोट ॥ युक्त साक्षात अरहन्त देव की अथवा द्रव्य अचितयोनि-आत्मप्रदेश रहित योनि । श्रु त या पीछी कमंडल उपकरणयुक्त
गुणयोनि के मूल तीन भेदों में से एक आचार्यादि की॥ . इन में से प्रत्येक विकल्प के भी पूजन
भेद ॥ की भचित सामग्री के भेदों से--(१)
___इस के गण अपेक्षा निम्न लिखित छह अचित जल से पूजा (२) अचित चंदन
भेद हैं:से पूजा (३) अचित तन्दुल से पूजा,
(१) अचित-शीत-संकृत योनि-वह अइत्यादि--कई विकल्प हो सकते हैं।
चित योनि जो शीतगुण युक्त ढकी हुई हो। नोट २.-मनुष्य शरीरों में केवल श्री. जैसे कुछ देव और नारकियों की तथो अर्हन्त देव ( केवली भगवान ) के शरीर में | कुछ एकेन्द्रिय जीवों की योनियां ॥ निगोद राशि नहीं होती और न उसमें किसी (२) अचित-शीत-विकृत योनि--वह समय त्रस जीव ही पड़ते हैं । इसी लिये उन अचित योनि जो शीतगुण सुस्त खुली हुई | का औदारिक शरीर ‘परमौदारिक अप्रतिष्ठत | हो । जैसे कुछ विकलत्रय और सम्मर्छन | प्रत्येक' होता है। अतः निर्वाण प्राप्ति पश्चात् | पञ्चेन्द्रिय जीवों की योनियां ॥ वह परम पवित्र अचित है। परन्तु शेष सर्व (३)अचित उष्ण-संवृत योनि-वह अ. मनुष्य-शरीर छद्मस्थ (असर्वज्ञ या अल्पश) चित योनि जो उष्ण गुणयुक्त ढकी हुई हो।।
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