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अप्रविष्ट श्र तज्ञान
उपवास- विधि, उपवास ★ पञ्च समिति, तीनगुप्ति संविस्तार निरूपण है ॥
( १२७ )
वृहत् जैन शब्दार्णव
की भावना, आदि का
१०. विद्यानुवादपूर्व - यह पूर्व १ करोड १० लाख मध्यमपदों में है । इस में 'अंगुष्टप्रसेन' आदि ७०० अल्प विद्या और 'रोहिणी' आदि ५०० महाविद्याओं का स्वरूप, सामर्थ्य और उन के साधनभूत मंत्र, तंत्र, यंत्र, पूजा विधानादि का, तथा सिद्धविद्याओं के फल का और (९) अन्तरीक्ष (२) भौम (३) अङ्ग (४) स्वर (५) स्वप्न ( ६ ) लक्षण (७) व्यञ्जन (८) छिन्न, इत्र अप्रभेदयुक्त 'निमित्तज्ञान' का 'सविस्तार निरूपण है ॥
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११. कल्याणवादपूर्व-पूर्व २६करोड़ मध्यपदों में वर्णित है। इसमें तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, अर्द्धचक्री – बलभद्र, नरायण, प्रति नारायण, इन शलाका पुरुषों के गर्भ जन्मादि के महान् उत्सव और इन पदों की प्राप्ति के
कारणभत १६ भावना, तपश्चरण या विशेष किंवा आचरणादि का, तथा चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्रों के गमन, ग्रहण आदि से और शुभाशुभ शकुनों से फल निश्चित करने की अनेकानेक विधियों का सविस्वार वर्णन है |
१२. प्राणप्रवाक्रियापूर्व - यह पूर्व १३ करोड़ मध्यम पदों में है । इस में काय चिकित्सा आदि अटाङ्ग आयुर्वेद (वैद्यक); भूतादि व्यन्तरकृत व्याधि दूर करने के उपाय मन्त्र यंत्रादि सर्व प्रकार के विष को उतारने वाला जाङ्गलिक प्रतीकार; इड़ा, पिल्ला, सुषुम्ना नाड़ियों तथा स्वरों का साधन और उनकी हायता से त्रिकाल सम्बन्धी कुछ ज्ञान
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अंगप्रविष्ट श्र तज्ञान
व शरीर को आरोग्य रखने के उपाय आदि; और गति के अनुसार १० प्रकार के प्राणों के उपकारक, अनुपकारक या अपकारक द्रव्यों का सविस्तार निरूपण है ॥
१३. क्रियाविशालपूर्व- - यह पूर्व ह करोड़ मध्यम पदों में है । इस में संगीत, छंद, अलङ्कारादि ७२ कला, स्त्रियों के ६४ गुण, शिल्प आदि विज्ञान, गर्भाधानादि
क्रिया, सम्यग्दर्शनादि १०८ क्रिया, देव बन्दना आदि २५ क्रिया, तथा अन्यान्य नित्य नैमित्तिक क्रियाओंका निरूपण है ॥ १४. त्रिलोकविन्दुसारपूर्व- - यह पूर्व १२ करोड ५० लाख मध्यम पदों में है । इस में तीन लोक का स्वरूप; २६ परिकर्म, अट व्यवहार, चार वीज, इत्यादि गणित; और मोक्ष का स्वरूप, मोक्ष गमन की कारणभूत क्रिया, मोक्ष सुख, इत्यादि क- कथन का निरूपण है ॥
नोट - देवो शब्द "अग्रायणी पूर्व" का नोट १ ॥
(५) चूलिका-- इस उपाङ्ग में १०४६४६००० मध्यमपद हैं ।
यह निम्न लिखित ५ विभागों में विभाजित है जिन में से प्रत्येक में मध्यमपदों की संख्या २०६ २०० है:
१. जलगता - इस में जलगमन, जलस्तम्भन, अनेक प्रकार के जलयान - रचन, जलयंत्र - निर्माण, तथा अग्नि-स्तम्भन, अग्नि भक्षण, अग्नि प्रवेश आदि की क्रियाएँ और उन में निर्भय होकर तैरने, चलने फिरने, बैठने आदि के उपाय, आसन, तथा मंत्र, तंत्र, यंत्र, तपश्चरण आदि का सविस्तार निरूपण है
॥
२. स्थलगता - इसमें अनेक प्रकार के
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