________________
( १४०
)
rameramanand
अचलगढ़ वृहत् जैन शब्दार्णव
अबलपुर ४ मील का पहाड़ी रास्ता है । यहां गढ़ । की धर्मपत्नी 'अनुपमादेवी' की इच्छा से चा-1 के नीचे एक तालाब, एक मैदान और लुक्य वंशीय राज्य के अन्त होने पर 'वीरधकई हिन्दुओं के शिवमन्दिर हैं। तालाब वल वाघेला' के राज्य कालमें सन १२५० ई० के किनारे पर एक दर्शनीय गऊ की के लगभग निर्माण कराया था। इसी आव मूर्ति है । राह में एक स्वेताम्बरी जैन मंदिर पहाड़ी के मन्दिरों में से एक मन्दिर पोरवाल है। यहाँ से अद्ध मील की चढ़ाई पर "अ- जातिरत्न 'विमलशाह' ने भी 'भीमदेव' के चलगढ़" नामक ग्राम है जिसमें दो स्वेता- शासन काल में सन् २०३१ ई० में श्रीआदि। म्बरी धर्मशाला और इन धर्मशालाओं में नाथ' प्रथम तीर्थकर का बनवाया था। ३ जैन मंदिर देखने ही योग्य हैं। इन में से
अचलग्राम-प्राचीन समय के एक प्रसिद्ध । एक तो अत्यन्त विस्तृत और विशाल है
ग्राम का नाम जिस के निवासी एक प्रसिद्ध जिस में बहुत बड़ी बड़ी १४ स्वेताम्बरी
श्रेष्ठी (सेठ ) की पुत्री "बनमाला'' और प्रतिमाएं १४४४ मन स्वर्ण की बड़ी मनोहर
राजपत्री 'मित्रश्री' श्रीकृष्ण के पिता 'श्री| हैं। इस मन्दिर के नीचे दूसरा मन्दिर है
वसुदेव' को विवाही गई थीं। जिसमें २४ देहरी हैं। इन मन्दिरों और उन
अचलद्रव्य-पट द्रव्यों में से एक रूपी की प्रतिमाओं का निर्माण गुजरात देश निवासी एक “भेषा शाह" नामक प्रसिद्ध
द्रव्य पुद्गल को छोड़ कर शेष पांचों अरूधनकुधेर ने कराया था जिसका बनवाया
पी द्रव्य अर्थात् (१) शुद्ध जीव द्रव्य (२) हुआ 'दैलवाड़ाआव-पहाड़ी पर १८ करोड़
धर्मद्रव्य (३) अधर्म द्रव्य (४) आकारुपयों की लागत का एक विशाल दर्शनीय
श द्रव्य (५) कालद्रव्य अचल हैं। इन | जैन मन्दिरहै जिसमें चहुँ ओर २४बड़ी बड़ी |
के प्रदेश सदैव स्थिर है । जीव द्रव्य जब और २८ छोटी देहरी एक से एक बढ़िया
तक कार्मण आदि पौद्गलिक शरीरों के और मनोहारिणी तथा मंदिर के साम्हने
बन्धन में फंस रहा है तब तक यह भी रूपी की ओर पाषाण के सिंह, हस्ती, घोटक
है और इसीलिो विप्रहगति में इस के आदि सर्व देखने ही योग्य है यह मन्दिर अ
प्रदेश चल हैं, चौध अयोग गुणस्थान में पनी रचना और शिल्पकला आदि के लिये।
(केवलि समुद्घात के काल को छोड़कर )। इतना लोक-प्रसिद्ध है कि भारतवर्ष से बा
अचल है और शेष अवस्थाओं में चला हर के दूर दूर देशों के यात्री भी इसे देखने आते और इसकी प्राचीन अद्भत रचना को अचलपद-मोक्षपद, अक्षयपद, अभयपद. देख कर चकित हो जाते हैं।
अविनाशीपद, शुद्धात्मपद, निकल परमात्म ____ नोट.-किसी किसी लेख से ऐसा पद निर्वाणपद, सिद्धपद, पञ्चमगति, जाना जाता है कि दैलवाड़ा आव पहाड़ी पर अष्टप्रवराप्राप्ति ॥ (देखो शब्द अक्षयपद') के जगत प्रसिद्ध जैन मन्दिर को गुजरात देश अचलपुर-ब्रह्मद्वीप के पास के आभीर निवासी पोरवाल जाति भूषण "वस्तुपाल'' | देश का एक नगर,जिसमें रेवती नक्षत्राचार्य और "तेजपाल", इन दो भाइयों ने 'तेजपाल' के शिष्यों ने दीक्षा ली थी। (अ०मा०)॥
EnAmsanmaamanual
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org