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( १५ ) अकामिक वृहत् जैन शब्दार्णव
अकारण दोष श्रद्धान के कारण मन्दकषाय युक्त धर्म- अकामुकदेव-धातकीखंड द्वीप को पूर्व | बुद्धि सहित (धार्मिक-अन्धश्रद्धा से )
__ दिशामें विजयमेरुके दक्षिण भरतक्षेत्रान्तर्गत स्वयम् पर्वतादि से गिरना, बर्फ़ में गलना,
आर्यखंड में भविष्य उत्सर्पिणी काल में | तीर्थजल में डूबना, अग्नि में जलना, अन्न
होने वाली चौबीसी के ११वें तीर्थकर । जल त्यागना, इत्यादि धर्मार्थ या धर्मरक्षार्थ
( आगे देखो शब्द “अढाई द्वीप पाठ" | सहर्ष कष्ट सहन करने से जो कर्मों की
के नोट ४ का कोष्ठ ३)॥ निर्जरा (हीनता, व्योग, नाश, काट-छाँट, या सम्बन्धरहितपना) हो उसे "अकाम |
| अकाय-कायरहित, बिन शरीर, बिना निर्जरा" कहते हैं ।
धड़, राहुग्रह (ज्योतिषी लोग 'राहु' का
आकार मनुष्य के कंठ के नीचे के सम्पूर्ण ( तत्वार्थ राजवार्तिक अ० ६, ।
शरीर अर्थात् धडरहित केवल गर्दन २ . सूत्र २० की व्याख्या |
सहित मस्तक के आकार का मानते हैं । नोट-क्रोधादि कषाय वश यदि स्व धड़ के आकार का 'केतु' ग्रह माना जाता शरीर को कोई कष्ट दिया जाय या किसी है। दोनो ग्रहों का शरीर मिलकर मनुष्या. उपाय द्वारा प्राण त्याग किए जांय तो इससे कार हो जाता है ); निराकार ब्रह्म, कायअकाम निर्जरा नहीं होती किन्तु दुर्गत का
रहित शुद्ध जीव, विदेहमुक्त जीव, निकल कारण तीब्र पापबन्ध होता है और ऐसे प्राण- परमात्मा या सिद्ध परमेष्ठी; षट् द्रव्य में त्याग को 'अपघात' या 'आत्मघात' कहते
से रूपी द्रव्य 'पुद्गल' को छोड़कर अन्य हैं जो तीब्र पापबन्ध का कारण होने के |
पाँचद्रव्य-जीवद्रव्य,धर्मद्रव्य,अधर्मद्रव्य, अतिरिक्त राज्य-दंड पाने योग्य तीव्र अप- || आकाशद्रव्य, और कालद्रव्य; षट द्रव्य में राध भी है ॥
से पञ्चास्तिकाय अर्थात् जीव.पुद्गल,धर्म,
अधर्म, और आकाश को छोड़कर केवल अकामिक-(१)पुष्कराद्ध द्वीप के विद्युन्मा. एक "कालद्रव्य" ॥
ली मेरु के दक्षिण भरत-क्षेत्रान्तर्गत आर्य अकारण दोष-कारण रहित या अप्रशस्त खंड की वर्तमान चौबीसी के २२वें
अथवा अयोग्य कारण सहित दोष । आहार तीर्थङ्कर । कविवर वृन्दावन जी ने इन्हें
सम्बन्धी एक प्रकार का दोष जिस से २१ वे तीर्थङ्कर लिखा है ॥
निग्रन्थ दिगम्बर मुनि सदैव बचते हैं। (२) पुष्कराद्ध द्वीप के विद्युन्माली नीचे लिखे ६ कारण बिना केवल शरीर मेरु के उत्तर ऐरावत-क्षेत्रान्तर्गत आर्य | पुष्टि या विषय-सेवनार्थ या जिह्वा की खण्ड की वर्तमान चौबीसी के १८३ लम्पटता आदि अप्रशस्त कारणों से जो तीर्थकर ( आगे देखो शब्द "अढ़ाई द्वीप भोजन करना है वह “अकारण दोष वाला पाठ" के नोट ४ का कोष्ठ ३)॥
भोजन" है॥
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