________________
( ६० )
वृहत् जैन शब्दार्णव
अग्निदेव
अग्निभूति
१६२ में अर्थात् विक्रम जन्म से ३०८ वर्ष पूर्व और विक्रमाब्द के प्रारम्भसे ३२६ वर्ष
नोट- आगे देखो शब्द " अढाईद्वीपपाठ" के नोट ४ में कोष्ठ ३ ॥
पूर्व शरीर परित्याग कर स्वर्ग प्राप्त किया) अग्निपुत्र - पीछे देखो शब्द “अग्निदत्त २”
का नोट (अ० मा० ) ॥
के ४ मुख्य शिष्य स्थविरों - ( १ ) गोद्रास, ( २ ) अग्निदत्त, ( ३ ) यज्ञदन्त, ( ४ ) सोमदत्त—में से द्वितीय स्थविर का
अग्निप्रभ - वर्त्तमान अवसर्पिणी में जम्बू
नाम ॥
नोट - संघ के आधार भूत ( १ ) आचार्य, (२) उपाध्याय, (३) प्रवर्तक, (४) 'स्थघिर' या बृद्ध और ( ५ ) गणधर या गणरस, अग्निप्रभा - श्री वासुपूज्य १२ वें तीर्थंकर के
द्वीप के ऐरावत क्षेत्र में हुए २२वें तीर्थंकरका नाम । (आगे देखो शब्द "अढाईद्वीपपाठ " के नोट ४ का कोष्ठ ३) ॥
यह ५ प्रकार के मुनि होते हैं । ( प्रत्येक का लक्षण व स्वरूपादि यथा स्थान देखें ) ॥ (मूलाचार १५५ ) २. जम्बूद्वीप सम्बन्धी ऐरावत क्षेत्र की वर्त
तपकल्याणक के समयकी पालकी का नाम जिसका दूसरा नाम 'पुष्पाभा' भी था ( अ०म० ) ॥
मान चौबीसी में से २३ वें तीर्थंकर का | अग्निबेग-आगे देखो शब्द "अग्निवेग” ॥
अग्निभानु-आगे देखो शब्द “अग्रभानु”॥
नाम भी अग्निदत्त है। (आगे देखो शब्द "अदाईद्वीपपाठ" के नोट ४ का कोष्ठ३ ) । नोट - " श्रीअग्निदत्त" तीर्थंकर का नाम कहीं कहीं "श्रीअप्रदत्त' और कहीं 'अग्निपुत्रः भी लिखा पाया जाता है ।
प्रग्निभूति - --इस नाम के निम्निलिखित कई इतिहास प्रसिद्ध पुरुष हुए हैं:
३. जम्बुद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में होने वाली अनागत चोबीसी के अन्तिम तीर्थंकर का नामभी यही 'अग्निदत्त' होगा । (आगे देखो शब्द अढाईद्वीप पाठके नोट ४का कोष्ट३) ॥ अग्निदेव - श्री ऋषभदेव के ८४ गणधरों
में से १३ वॅ गणाधीश का नाम । यह भी " अग्निगुप्त" की समान कई सौ मुनियों के नायक ऋषि थे और श्री ऋषभदेव के पश्चात् तपोबल से कर्म बन्धन तोड़ संसार से 'मुक्त हुए |
(देखो ग्रन्थ "वृ० वि० च० ' )
अग्निनाथ
२४ तीर्थङ्करों में से दशों का नाम ॥
Jain Education International
-गत उत्सर्पिणी काल में हुए
I
(१) श्री महावीर अन्तिम तीर्थङ्करके ११ गणाधीशों से द्वितीय गणधर । यह प्रथम गणधर "श्री इन्द्रभूति गोतम'' के (जो "श्री गोतम स्वामी" या "श्री गोतम" के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं) लघु भ्राता थे । इनके एक लघु भ्राता 'वायुभूति' थे । अर्थात् इन्द्रभूति, अग्निभूर्ति और वायुभूति यह तीन सगे भाई थे जो गृहस्थाश्रम त्यागने के पश्चात् क्रम से गौत्तम, गार्ग्य और भार्गव नान से भी प्रसिद्ध हुए । इन का पिता गोत्तम गोत्री - ब्राह्मण “वसुभूति” (शांडिल्य) मगधदेश प्रास्तु के " गौर्वर-ग्राम का रहने वाला एक सुप्रसिद्ध धनाढ्य प्रतिष्ठित विद्वान, और अपने ग्राम का मु खियाथा | वसुभूति (शांडिल्य ) की 'पृथ्वी'
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org