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( ६३ ) अङ्कगणना वृहत् जैन शब्दार्णव
अङ्कगणना पूर्वोक्त प्रकार प्रत्येक अगले (७) जघन्ययुक्तासंख्यात-इस संख्या अगले अधिक २ बड़े अनवस्थाकुंड को का परिमाण जानने के लिये पहिले 'बल' | सरसों से भर भर कर रीता करते शब्द का निम्नलिखित अर्थ गणित शास्त्र समय एक एक सरसों अब 'दूसरे की परिभाषा में जान लैना आवश्यक है; नवीन उतनेही बड़े 'शलाकाकुंड' में 'बल' शब्द के लिये दूसरा पारिभाषिक शब्द फिर बार बार डालते जाइये । जब 'घात' भी हैं:फिर यह दूसरा शलाकाकुंड भी किसी अङ्क को २ जगह रख कर शिखाऊ भर जाय तब दूसरा दाना . परस्पर गुणन करने को उस अङ्क का सरसों का 'प्रतिशलाका' कुंड में 'द्वितीयबल' या उस अङ्क का 'वर्ग' डालिये। इसी प्रकार करते २ जब कहते है, ३ जगह रख कर परस्पर गुणन "प्रतिशलाकाकुंड" भी भर जाय करने को उस अङ्क का 'तृतीयबल' या तब एक सरसों चौथे कुंड ‘महाश- 'घन' कहते हैं, इसी प्रकार ४ जगह रख लाका' नामक में डालिये ॥
कर परस्पर गुणन करने को 'चतुर्थबल' . जिस क्रम से एक बार प्रति- ५ जगह रख कर परस्पर गुणन करने को शलाकाकुंड भरा गया है उसी कूम 'पञ्चमबल' कहते हैं, इत्यादि............. ॥ से जब दूसरा उतना ही बड़ा प्रति
जैसे २ को २ जगह रख कर परस्पर शलाकाकुंड भी भर जाय तब 'दूस- गुणन किया तो (२४२=४) ४ प्राप्त . रा दाना सरसों' का 'महाशलाका' हुआ अतः २ को द्वितीय बल ४ है। इसी कुंड में डालिये । इसी प्रकार जब
प्रकार २ का तृतीय बल २x२x२=4 एक एक सरसों पड़ कर महाश
है; २ का चतुर्थ बल २x२x२x२= १६ लाकाकुंड भी शिखाऊ भर जाय ।
है; २ का पञ्चम बल २x२x२x२x२ तष सर्व से बड़े अन्तिम अनवस्था
= ३२ है, इत्यादि । इसी प्रकार ३ का कुंड में जितनी सरसो समाई उसके
द्वितीयबल ३४३%D६; तृतीयबल ३४३ दानों की संख्या की बराबर "जघ
४३=२७, चतुर्थबल ३४३४ ३४३= न्यपरीतासंख्यात" का प्रमाण है ॥
८१, पञ्चमबल ३४३४३४३४३=२४३ - (त्रि. गा. २८-३५ ) ॥
| इत्यादि ॥ (५) मध्यपरीतासंख्यातं-जघन्यप- अङ्कसंदृष्टि में इसे इस प्रकार लिखते रीतासंख्यात से १ अधिक से लेकर उत्कृ- हैं कि मूलअङ्क के ऊपर कुछ सीधे हाथ ष्टपरीतासंख्यात से १ कम तक की संख्या की ओर को हट कर 'बल' सूचक अङ्क रग्व की जितनी संख्यायें हैं वे सर्व ही 'मध्यप- | देते हैं। जैसे २ का द्वितीयबल, तृतीयरीतासंख्यात' की संख्यायें हैं।
बल, चतुर्थबल, पञ्चमबल इत्यादि को (६) उत्कृष्टपरीतासंख्यात-"जघ- | क्रम से २२,२३,२०,२५, इत्यादि; और न्ययुक्तासंख्यात" की संख्या से १ कम ॥ ३ के द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पञ्चमबल
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