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वृहत् जैन शब्दार्णव
अङ्गप्रविष्ट श्र तज्ञान
मुनीश्वरों मे तीव्र उपसर्ग सहन किया || ( भग० आ० पत्र २०३॥ ) नोट२ - जिन्हें घोर उपसर्ग सहन करते हुए कैवल्यज्ञान प्राप्त होता और तुरन्त ही अन्तर्मुहूर्त में मुक्ति पद मिल जाता है उन कैवल्य-शानियों को‘अन्तः कृत्केवली" कहते हैं ।
निरूपण है ॥
नोट- जिस कथा में तीर्थङ्करादि पुराण- पुरुषों का चरित्ररूप " प्रथमानुयोग", लोकालोक का तथा कर्मादि के स्वरूपादि का वर्णनरूप "करणानुयोग, "गृहस्थधर्म और मुनिधर्म का निरुपण रूप "चरणानुयोग", और पट द्रव्य, पञ्चास्तिकाय, सप्ततत्त्व, नव पार्थ आदि की व्याख्या रूप “द्रव्यानुयोग”, इन चार अनुयोगों का कथन सतमार्ग में प्रवृति और असत् मार्ग से निवृति करा देने वाला हो इसे "आक्षेपिणी कथा" कहते हैं ॥
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नोट३ - एक तीर्थङ्कर के जन्मले अगले तीर्थङ्कर के जन्म तक के काल को पूर्व तीर्थङ्कर का "तीर्थकाल" कहते है |
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[९] अनुत्तरौपपादिकदशांग - यह अङ्ग ९२४४००० मध्यम पदों में है। इस में प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थकाल में जिन दश दश सुनियों ने महा भयङ्कर उपसर्ग सहन कर और समाधि द्वारा प्राण त्याग कर "विजय" आदि पांच अनुत्तर विमानों में से किसी न किसी में जा जन्म धारण किया उन सर्वका विस्तार सहित वर्णन है ।
नोट- श्री महावीर स्वामी अन्तिम तीर्थङ्कर के तीर्थकाल में ( १ ) ऋजुदास ( २ ) धन्यकुमार ( ३ ) सुनक्षत्र (४) कार्त्तिकेय (५) नन्द ( ६ ) नन्दन ( ७ ) शालिभद्र (=) अभयकुमार (९) वारिषेण (१०) चिलाति पुत्र, इन दश ने दारुण उपसर्ग सहन किया ||
( भग० आ० पत्र २०४ ) [१०] प्रश्नव्याकरणाङ्ग - यह ३१ ६००० मध्यम पदों में है। इसमें नष्ट. मुष्टि, लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवन, मरण, बिस्ता, भय, जय, पराजय, आदि त्रिकाल सम्बन्धी अनेकानेक प्रकार के प्रश्नोंका उत्तर देने की विधि और उपाय बताने रूप व्याख्यान है, तथा प्रश्नानुसार आक्षेपिणी, विक्षेपणी, संवेजनी, निवेजनी, इन चार प्रकार की कथाओं का भी इसमें
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अप्रविए थ तज्ञान
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जिस कथन में गृहीतमिथ्यात्वजन्य भाव सम्बन्धी एकान्त वाद" के अन्तर्गत जो ३६३ मिथ्यात्व हैं उन का खंडन नय प्रमाान्वित दृढ़ युक्तियों द्वारा न्याय पद्धति से किया जाय उसे "विक्षेपिणी कथा" कहते हैं ॥
जिस कथा में यथार्थ धर्म और उसके उत्तम फल में अनुराग उत्पन्न करानेवाला कवन हो उसे "संवेजनी कथा" कहते हैं ॥
जिस कथा में सांसारिक भोगबिलासी और पञ्वेन्द्रियजन्य विषयों की असारता, क्षण मंतुरता, और अन्तिम अशुभ फल आदि निरूपण करके उप से विरकता उत्पन्न कराने वाला कथन हो उसे "निवेजनी कथा" कहते हैं ॥
[११] विपाकसूत्राङ्ग-यह अंग १८४००००० मध्यम पदों में है। इसमें सर्व प्रकार की शुभाशुभ कर्म प्रकृतियों के उदद्य, उदीरणा, सत्ता आदि का फल देने रूप विपाक का वर्णन तीव्र, मन्द, मध्यम अनुभाग के अनुसार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव चतुष्टय की अपे क्षा से है ॥
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