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( १०३.) अङ्कगणित वृहत् जैन शब्दार्णव
अङ्क नाथपुर से गुणें तो भी प्रत्येक गुणनफल EEEEEEE अनुमान, यह ६ भेद हैं । इन ६ भेदों में से ८८६,१७७७७७७७७७८,२६६६६६६६६६७,३५५ तृतीभेद "गणिमान" अङ्कगणित का ५५५५५५५६, इत्यादि में सर्व अङ्क= ही ८, ७ मुख्य भेद है जिसके परिकर्माष्टक, शाताही ७, ६ही ६ त्यादि एक ही से आते हैं, ज्ञातराशिक, व्यवहारगणित, दर, व्याज केवल एक प्रथम अङ्क या प्रथम और अन्तिम आदिक अनेक भेद हैं । इन में से "परिएक एक अङ्क अन्य आते हैं। यह अन्य अङ्क कर्माष्टक" सर्व अन्य भेदों का मूल है । भी प्रत्येक गुणनफल में ऐसे आते हैं जिनका इसके (१) साधारणपरिकर्माप्टक (२)मिश्रओड़ भी ही है और पहिले गुणनफल में परिकर्माष्टक (३) भिन्नपरिकर्माष्टक (४) इकाई के स्थान पर जो अङ्क आता है वह शम्यपरिकर्माष्टक (५) दशमलवपरिकर्मास्वयम् ही है। प्रत्येक गुणनफल में केवल प्टक (६) श्रेढीबद्धपरिकर्माष्टक आदि कई इतनी ही बात नहीं है कि प्रथम और अन्तिम भेद हैं जिन में से प्रत्येक के आठ२ अङ्ग (१) अङ्क ऐसे आते हैं जिनका जोड़ है किन्तु संकलन अर्थात् जोड़ या योग (२) व्यवइतनी और विशेषता है कि वे दोनों अङ्क पास कलन अर्थात् बाक़ी या अन्तर (३) गुणा पास यथाक्रम रखने से वही संख्या बन जाती (४) भाग (५) वर्ग (६) वर्गमूल (७) धन है जो प्रत्येक गुणाकार में “गुणक"संख्या है। (८) घनमूल हैं । और ज्ञाताशातगशिक यदि गुणक संख्या दो अङ्को से अधिक है अ- के त्रैराशिक, पंचराशिक, सप्तराशिक, र्थात् 88 से बड़ी है तो भी गुण्य में मध्य के | आदि कई भेद हैं । इसी प्रकार व्यवहारसमान अकों के अतिरिक्त दोनों छोरों पर जो गणित, दर और व्याज के भी (१) साधाअङ्क आगे वे भी ऐले होंगे जो या तो रण (२) मिश्र, यह दो दो भेद हैं ॥ उपरोक्त नियमबद्ध होंगे या उनका अन्तिम ___नोट-देखो शब्द “अङ्कविद्या" नोटों जोड़फल यही अङ्क होगा जो मध्य के 'समान | सहित ॥ अङ्क' हैं ( देखो शब्द "अङ्कगणित" और | अङ्कनाथपुर-दक्षिण भारत के मैसूर रा“अङ्कविद्या" नोटों सहित ) ॥
ज्यान्तर्गत मन्दगिरि स्टेशन से १४ मील अङ्कगणित-अङ्कविद्या या गणितविद्या के | पर एक "श्रवणबेलगुल" ( जैनबद्री ) ग्राम कई विभागों में से वह विभाग जिसमें है जहां इसी नाम के पर्वत पर 'श्रीवाहुशून्य सहित १ से ६ तक के मूल १० अङ्कों बलो' या गोम्मटस्वामी' की बड़ी विशाल से तथा इन ही मूलअङ्को के संयौगिक प्रतिमा ६० फिट या ४० हस्त ऊंची खड़े अङ्कों से काम लिया जाता है । ( आगे| आसन ( उत्थितासन ) विरासमान है। देखो शब्द 'अङ्कविद्या')॥
इसी के निकट यह 'अङ्कनाथपुर' नामक इस अङ्कगणित के (१) मान (२) अ- एक ऊजड़ ग्राम है जो प्राचीन समय में वमान (३) गणिमान (४) प्रतिमान (५) गङ्गवंशीय जैन राजाओं के राज्य में जैनों तत्प्रतिमान (६) उन्मान, यह ६, या (१)। का एक प्रसिद्ध क्षेत्र था। यहां आजकल द्रव्यमान (२) क्षेत्रमान (३) गणिमान (8) 'अङ्कनाथेश्वर' नाम से प्रसिद्ध एक हिन्दू कालमान (५) तुलामान (६) उन्मान या मन्दिर है जिसकी कई छत्तों व सीढ़ी
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