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( १०४ ) अङ्कप्रभ वृहत् सेन शब्दार्णव
अङ्कविद्या आदि पर के लेखों को देखने से ज्ञात होता कल २० या २१ घर दिगम्बर जैनों के हैं है कि यह नवीन हिन्दू मन्दिर जैनियों के और ४ बड़े बड़े विशाल जैनमन्दिर हैं। १०वीं शताब्दी के बने मन्दिरों की सा- जिन में सहस्रों जिनप्रतिमा विराजमान | मग्री से बना है। इस मन्दिर के एक है। यहां एक भौंरे में चतुर्थकाल की प्रास्तम्भ पर कई छोटो छोटो जैनप्रतिमाएं चीन जिनप्रतिमा श्री पार्श्वनाथ तीर्थकर भी अभी तक विराजमान हैं।
की श्यामवर्ण बालरेत की बनी हुई बड़ीही अङ्कप्रभ-कुंडलगिरि नामक पर्वत पर के | मनोहर है जो 'चिन्तामणिपादनाथ' के पश्चिम दिशा के एक कूट का नाम, जिस नाम से सुप्रसिद्ध है। इसी लिये यह क्षेत्र का निवासो 'अङ्कप्रभ' या 'महाहृदय' ना- भी श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथ' ही के नाम | मक एक पल्योपम की आयुवाला नाग- से प्रसिद्ध है। यह भारतवर्ष के लगभग कुमार जाति का देव है।
५० जैन अतिशयक्षेत्रों में से एक अतिशय___ यह पर्वत 'कुंडलवर' नामक ११वें क्षेत्र और बम्बई इहाते के २४ या केवल द्वीप के मध्य में वलयाकार है । इस पर्वत गुजरात प्रान्त के १३ प्रसिद्ध जैनतीर्थक्षेत्रों की चारों दिशाओं में से प्रत्येक में चार २ में से एक तीर्थक्षेत्र है। ( देखो शब्द "असाधारणकूट और एक एक 'सिद्धकूट' या | तिशयक्षेत्र" और 'तीर्थक्षेत्र' ) ॥ 'जिनेन्द्रकूट' हैं ।
अङ्कविद्या-गणितविद्या । वह विद्या (त्रि. गा. ९४४, ९४५, ९४६, ९६०; ? जिसमें गणना के अङ्कों या रेवाओं या । हरि. सर्ग ५ श्लोक ६८४-६६४ ॥ कल्पित चिन्हों या अन्यान्य आकारों आदि नोट-किसी पर्वत की चोटी को
से काम लेकर अभीष्ट फल की प्राप्ति की| 'शिवर' या 'कूट" कहते हैं । जिस कूट पर
जाय ॥ कोई जिनचैत्यालय हो उसे "सिद्धकूट" या ____ नोट१-विद्या के दो मूल भेद हैं-(१) 'जिनेन्द्रकूट' कहते हैं ।
शब्दजन्य विद्या और ( २ ) लिङ्गजन्य विद्या।
इनमें से पहिली 'शब्दजन्य विद्या' अक्षरात्मक अङ्कमुख (अङ्कनुह)-पद्मासन का अग्र
शब्दजन्य और अनक्षत्मक शब्दजन्य इन भाग (अ० मा० )॥
दो भेद रूप है । और दूसरी 'लिङ्गजन्यविद्या' अङ्कलेश्वर -यह एक अतिशययुक जैन- केवल अनक्षरात्मक ही होती है ॥ तीर्थस्थान है जो बम्बई गुजरात प्रान्त | अक्षरात्मक शब्दजन्यविद्यामें व्याकरण, में सूरत रेलवे जङ्कशन से भरीच होती | कोष, छन्द, अलङ्कार तथा गणित, ज्योतिष, हुई बड़ौदा जाने वाली लाइन पर सूरत वैद्यक, इतिहास और गान आदि गर्भित से उत्तर और भरोंच से दक्षिण की ओर । हैं । जिनमें व्याकरणविद्या और गणित को है। भरोंच से लगभग ६ या ७ मील विद्या यह दो मुख्य हैं । 'गणितविद्या' का 'अङ्कलेश्वर' नामक रेलवे स्टेशन से १ मील ही नाम 'अङ्कविद्या' भी है । ( इस विद्या . पर यह एक प्रसिद्ध नगर है । यहां आज | में अक्षरों की मुख्यता न होने से इसे
MaulanaKAR
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