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अग्निसह ___ वृहत् जैन शब्दार्णव
अग्न्यिाभ अग्निसह-यह 'श्वेतिक' नगर निवासी | "अग्निसह' के जीव ने जो अन्तिम १६ भव "अग्निभूति'' नामक ब्राह्मण की स्त्री 'गो- धारण कर २० वें भव निर्वाणपद प्राप्त किया त्तमी' के उदर से उत्पन्न हुआ था । परि
उनके नामःब्राजक संन्यासी होकर उग्रतपोबल से |
(१) 'शांडिल्य' ब्राह्मण का पुत्र इसने देवायु का बन्ध किया और शरीर 'स्थावर'(२) ब्रह्म स्वर्ग में देव (३) विश्वभति' परित्याग करने के पश्चात् सनत्कुमार ना
| राजा का पुत्र 'विश्वनन्दी' (४) 'महाशुक्र' नामक तृतीय स्वर्ग सन्म लिया। चिरकाल मक १० वा स्वर्ग में देव (५) प्रजापति राजा स्वर्गसुख भोगकर "मन्दिर, नगरमें एक का पुत्र 'त्रिपृष्ठ' नारायण (६) महातमप्रभा "गौत्तम"नामक ब्राह्मणका पुत्र ‘अग्निमित्र' | या माधवी नामक सप्तम पृथ्वी (नरक ) में हुआ । त्रिदंडी सन्यस्थपद में दीक्षित हो
नारकी (७) सिंह (पशु) (८) रत्नप्रभा या| कर और घोर तप कर आय के अन्त में घमा नामक प्रथम पृथ्वी (नरक) में नारकी शरीर छोड़ 'महेन्द्र' नामक चतुर्थस्वर्ग में
(६) सिंह (पशु) (१०) सोधर्म स्वर्ग में देव ऋद्धिधारी देव हुआ। पश्चात् अनेक जन्म
(११) 'कनकपुंख' राजा का पुत्र ‘कनकोज्वल' धारण कर अन्त में श्री महावीर तीर्थडर | (१२) लन्तिव नामक सप्तम स्वर्ग में देव (१३) हुआ ॥
'बजूसेन' राजा का पुत्र ‘हरिषेण' (१४) महानोट-अग्निसह के कुछ पूर्वभव और
शुक्र स्वर्ग में देव (१५) 'सुमित्र' राजा का
पुत्र 'प्रियमित्र' चक्री, (१६) सहस्रार नामक ५ आगामी भय, तथा निर्वाण प्राप्त तक के २० अन्तिमभवः- (१) 'पुरूरवा' नामक भीलराज
१२ वें स्वर्ग में देव (१७) 'नन्दिवर्द्धन' राजाका (२) सौधर्म नामक प्रथम स्वर्ग में देव (३) प्र
पुत्र नन्द (१८) 'अच्युत' नामक १६ वें स्वर्ग थम तीर्थंकर "श्रीऋषभदेव" का पौत्र और
में अच्युतेन्द्र(१६) श्री वर्द्धमान महावीर तीर्थभरत चक्रवर्ती का पुत्र 'मरीचि (४) ब्रह्म नामक
कर (२०) निर्वीण । (देखो शब्द 'अग्निमित्र'
और प्रत्येक का अलग अलग चरित्र जानने के पंचम स्थान में देव (५) कपिल नामक ब्राह्मण
लिये देखो ग्रन्थ “वृ० वि० च०")॥ का पुत्र ‘जटिल' (६) प्रथम स्वर्ग में देव (७)
अग्निसिंह(प्रा० अग्गिसीह)-वर्तमान 'भारद्वाज' ब्राह्मण का पुत्र 'पुष्पमित्र' (८) प्रथम स्वर्ग में देव () 'अग्निभूति' ब्राह्मण की
अवसर्पिणी में भरतक्षेत्र में हुये ७. वें 'गौत्तमी' नामक स्त्री से उत्पन्न 'अग्निसह'
बलभद्र और नारायण के पिता का नाम ।
(अ० मा०)॥ नामक पुत्र (१०) सनत्कुमार नामक तृतीय स्वर्ग में देव (११) 'गौत्तम' ब्राह्मण का पुत्र
अग्निसेन-पीछे देखो शब्द “अग्निषेण" 'अग्निमित्र'(१२)महेन्द्र नामक चतुर्थ स्वर्ग में अग्न्यिाभ-१६ स्वर्गों में से ५ वे स्वर्ग देव (१३) 'सालंकायन' ब्राह्मण का पुत्र 'भार- (ब्रह्मस्वर्ग या ब्रह्मलोक ) के लौकान्तिक । द्वाज'(१४) 'ब्रह्म' नामक पंचम स्वर्ग में देव ॥ नामक उपरिस्थ अन्तिम भाग में बसने
ब्रह्म स्वर्ग की आयु पूर्ण करने के पश्चात् | वाले लौकान्तिक देवों का एक कुल जो अनेक भवान्तरों में जन्म मरण करने पर इसी । पूर्व दिशा और ईशान कोन के बीच के
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