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तिथी ।
( ८५ ) . अघोर वृहत् जैन शब्दार्णव
अङ्क (४) जीवविपाकी ३१ प्रकृतियाँ हैं जिनका | शिव, एक शैवीसम्प्रदाय, भादों कृ० १४ विवरण निम्न प्रकार है:
__(१) पुद्गल विपाकी ६२-शरीर ५, अघोरगुणब्रह्मचर्य( घोरब्रह्मचर्य )--१८ आङ्गोपांग ३, बन्धन ५, संघात ५, संस्थान
सहस्र दूषणरहित अखंडब्रह्मचर्य, जिस ६, संहनन ६, स्पर्श, रस ५, गन्ध २, वर्ण ५,
में शान्तिपूर्वक तपोबल से चारित्र मोहिअगुरुलघु, उपघात, परघात, आतप, उद्योत,
नीयकर्म का उत्कृष्ट क्षयोपशम होकर कभी निर्माण, प्रत्येक, साधारण, शुभ, अशुभ,
स्वप्नदोष तक न हो और कामदेव को स्थिर, अस्थिर, यह सर्व ६२ प्रकृतियां नाम:
पूर्णतयः जीत लिया गया हो । यह अष्टकर्म की ६३ प्रकृतियों में से हैं ॥ .
ऋद्धियों में से चौथी 'तपोऋद्धि' के ७ भेदों (२) भवविपाकी ४--आयुकर्म की
में से अन्तिम भेद है । इस ऋद्धिका स्वामी चारों प्रकृतियां ॥
अपने "अखंडब्रह्मचर्यबल" से उप्रईति(३) क्षेत्रविपाकी ४--नामकर्म की
भीति, मरी, दुर्भिक्ष, रोग, आदि उपद्रवों प्रकृतियों में सें आनुपूर्वी चारों प्रकृतियां ॥
को अपनी इच्छामात्र से तुरन्त शान्त कर (४) जीवविपाकी ३१--नामकर्म की
सकता है। शेष २७ और गोत्रकर्म की दोनों, और वेद
नोट १--तपोऋद्धि के सात भेदः-- नीयकर्म की दोनों प्रकृतियां ॥
(१) उप्रतपोऋद्धि (२) दीप्ततपोऋद्धि (३) (घातियाकर्म की ४७ उत्तर प्रकृतियां
तप्ततपोऋद्धि (४) महातपोऋद्धि (५) घोरसर्व ही जीवविपाकी हैं । अतः सर्व १४८ |
तपोऋद्धि (६) घोरपराकमऋद्धि (७) घोरउत्तरप्रकृतियों में से ७ प्रकृतियां जीव- |
ब्रह्मचर्य या अघोरगुणब्रह्मचर्यऋद्धि ॥ वेपाकी हैं)॥
( देखो शब्द "अक्षीणऋद्धि'के नोट २ में नोट १०--जिन कर्म प्रकृतियों का फल |
| अष्टमूलऋद्धियों और उनके ६४ भेदों का IT उदय पौद्गलिक शरीर में होता है उन्हें |
विवरण )॥ पुद्गलविपाकी", जिनका उदय मनुष्यादि
नोट २--ब्रह्मचर्यव्रत सम्बन्धी १८ वों में होता है उन्हें "भवधिपाकी", जिनका
सहस्र दोषों का विवरण जानने के लिये दय जीव को परलोक गमन करते समय
| देखो शब्द "अठारहसहस्रमैथुन कर्म"। र्गक्षेत्र में होता है उन्हें "क्षेत्रविपाकी" और
अघोरगुण ब्रह्मचर्यऋद्धि-देखो शब्द नका उदय जीवकी नारक आदि पर्यायो |
'अघोरगुणब्रह्मचर्य' ॥ . । अवस्थाओं में होता है उन्हें 'जीवविपाकी'
अघोरगुणब्रह्मचारी-घह ब्रह्मचारी जिसे
'अघोरगुणब्रह्मचर्यऋद्धि' प्राप्त होगई हो ॥ गो. क. ६,११-१४,२१,४१-५१,८४,१२७, ।।
अङ्क (अंक)--(१) चिन्ह, संकेत, संख्या, १४७,त.सू.अ.८-तू.८,१०,११,१२,१४-२०
संख्या का चिन्ह, शून्य सहित १ से है घोर-शान्ति, सौम्यता, घ्रणा या ग्लानि तक संख्या, दाग, रेखा, लेख, अक्षर, नाटक त्याग, अतिघोर, अतिभयंकर, उग्रोप्र, | | का एक अंश या परिच्छेद, गोद, बार, अव
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