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अङ्कगणना वृहत् जैन शब्दार्णव
अङ्क गणना शब्द द्वारा छह छह स्थाल आगे बढ़ाई | सप्तम २० स्थान 'महानमहानसंख्य' के, जाने वाली अगरेजी की इकाई दहाई के अष्टम २० स्थान 'परमसंख्य' के, नवम २० समान संख्यावाचक एक एक ही शब्द स्थान 'महापरमसंख्य' के, दशम २० स्थान द्वारा बीस बीस स्थान बढ़ाकर १५० 'महामहापरमसङ्ख' के, एकादशम् २० स्थानों से भी बहुत आगे यथा आवश्यक स्थान 'महानपरमसङ्ख' के, द्वादशम २० बढ़ाई जा सकती है ॥
स्थान 'महामहानपरमसङ्ख' के, त्रयोदशम जिस प्रकार अगरेजी भाषा की इकाई २० स्थान 'महानमहानपरमसङ्ख' के, चदहाई के पहिले ६ स्थान “थाउजेंड्ज" | तुर्दशम २० स्थान 'ब्रह्मसङ्ख' के, पञ्चद(Thousands) के हैं, दूसरे ६ स्थान
शम२० स्थान'महाब्रह्मसाके, इत्यादि। 'मिलयन्ज' ( Millions ) के, तीसरे ६ इस 'उत्संख्यक' इकाई दहाई में पहिले स्थान 'बिलियन्ज' (Billions) के,चौथे ६ 'परार्द्ध' के २० स्थानों से २० अङ्क प्रमाण स्थान ट्रिलियन्ता'(Trillions) के, इत्यादि संख्या की गणना, दूसरे 'सङ्ख' के २० हैं । इसी प्रकार 'उत्संख्यक' इकाई दहाई
स्थानों से४० अङ्कप्रमाण संख्या की गणना के प्रथम २० स्थान 'परार्द्ध' के, द्वितीय तीसरे ‘महासङ्ख' के २० स्थानों से ६० २० स्थान 'संख्य' के, तृतीय २० स्थान अङ्क प्रमाण, चौथे 'महामहासङ्ख' के 'महासंख्य' के, चतुर्थ २० स्थान 'महामहा- २०स्थानों से८०अङ्क प्रमाण, पांचवें महान संख्य'के, पञ्चम २० स्थान 'महानसंख्य' | सङ्ख' के २० स्थानों से १०० अङ्क प्रमाण, के, षष्ठम २० स्थान 'महामहानसंख्य के, छठे 'महा महानस' के २० स्थानों से
(२) प्रथमः परिकर्म व्यवहार ( Arithmetical Operations )-इसमें प्रत्युत्पन्न, भागहार, वर्ग, वर्गमूल आदि ८ विभाग ११५ श्लोकों में हैं। * (३) द्वितीयः कलासवर्ण व्यवहार ( भिन्न परिकर्म Fractions)-इसमें भिन्न प्रत्युत्पन्न आदि ११ प्रकरण १४० श्लोकों में है ॥
(४) तृतीयः प्रकीर्णकव्यवहार [Miscellaneous Problems on fractions &c.]इसमें भागजाति, शेषजाति, मूलजाति, शेषमूलजाति, द्विरप्रशेषमूलजाति, आदि नव प्रकरण ७२ श्लोकों में हैं।
(५) चतुर्थः त्रैराशिक व्यवहार ( Rule of Three )-इसमें त्रैराशिक,व्यस्त त्रैपंचसप्तनवराशिक, गतिनिवृति, और पंचसप्तनवराशिकोद्देशक, यह ४ प्रकरण ४३ श्लोकोंमें हैं।
(६) पंचमः मिश्रकन्यवहार (Mixed Problems &c.)--इस में संक्रमणसूत्र, पंचराशिकवधि, दृद्धिविधान, प्रक्षेपकुट्टीकार, आदि १० प्रकरण ३३७॥ श्लोकों में हैं।
(७) षष्टः क्षेत्रगणितव्यवहार ( Measurement of Areas &c.)-इसमें व्यवहारिक गणित, सक्षमगणित, जन्यव्यवहार, और पैशाचिक व्यवहार, यह ४ प्रकरण २३२॥ श्लोकोंमें हैं।
(E) सप्तमः खातव्यवहार (Calculations regarding excavations.)-इसमें खातगणित, चितिगणित, और क्रकचिकाव्यवहार, यह ३ प्रकरण ६८॥ इलोकों में हैं।
(8) अष्टमः छायाव्यवहार ( Calculations relating to Shadows.)--इसमें एक प्रकरण ५२॥ श्लोकों में वर्णित है। इस प्रकार इस महान गणितग्रन्थ में सर्व ११३१ श्लोक अनुष्टप आदि कई प्रकार के छन्दों में हैं।
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