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अक्षोहिणी
वृहत् जैन शब्दार्णव
अखाद्य
नामक धर्मपत्नी के उदर से (१) उद्धव, | अवय बड-देखो शब्द “अक्षयबड़" (२) वच (३) क्षुभितवारिधि (४) अम्भोधि (५) जलधि (६) वाम देव | अखाद्य-अभक्ष, न खाने योग्य; वह पदार्थ और (७) दृढ़ व्रत, यह सात पुत्र थे॥ - या वस्तु जिसके खाने से शारीरिक या
(देखो ग्रन्थ "वृ०वि० च०')| मानसिक अथवा आत्मिक बल में कोई न (३) अन्धकवृष्णि की दूसरी रानी |
कोई हानि पहुँचे, जो बुद्धि को मलीन करे धारणी का एक पुत्र भी "अक्षीभ्य" था या स्थूल बनावे अथवा चित्त में कोई जिसने श्रीनेमिनाथ स्वामो से दीक्षा ले विकार (क्रोध, मान, माया, लोभ आदि) कर और गुणरत्न नामक तप करके तथा
उत्पन्न करे और जिसमें जीवघात १६ वर्ष तक इसी अवस्था में रहकर अन्त
अधिक हो॥ में १ मास का अनशन तप किया और नोट-ऐसे हानिकारक मुख्य पदार्थ शत्रुजय पर्वत से निर्वाण पद पाया | निम्न लिखित २२ हैं:(अ. मा.)॥
(१) इन्द्रोपल या ओला-जमे हुए अक्षोहिणी-( अक्षौहिणी, अक्षौहिनी ) जल के टुकड़े । यह जल-वर्षा के साथ साथ
कभी कभी आकाश से पाषाण के टुकड़े एक बड़ी सैना जिसमें १० अनीकिनी दल
जैसे बरसते हैं । यह गुण में अति शीत युक्त हो अर्थात् जिस में २१८७० रथ, इतने ही
शुष्क हैं । दाँतों की जड़ों को बहुत हाथी, रथों से तिगुने ६५६१० घोड़े और
हानिकारक और बातरोग उत्पादक हैं। पचगुने १०९३५० प्यादे ( पैदल ) हो।
शीत प्रकृति के मनुष्यों की अंतड़ियों को नोट१.-हर रथ में एक रथसवार और
हानि पहुँचाते हैं ॥ एक रथवान (स्थवाहक) और हर हाथी
(२) घोर बड़ा, या दही मठा मिश्रित पर एक हाथी-सवार और एक हाथीवान | द्विदल-जिस अन्न या अनाज की दो दाल होते हैं और हर घोड़े पर केवल एक घुड़
होती हैं, जैसे चना, मटर, उड़द, मूंग, सवार होता है।
मोठ, मसूर, रमास, लोभिया, अरहड़ नोट २.–पूर्वकाल में सैना के निम्न
आदि, इन्हें द्विदल या विदल या दलहन लिखित : भेद माने जाते थे:
कहते हैं । ऐसे कच्चे या पके या भुने या (१) पत्ति-जिसमें एक रथ, एक उबाले या पिसे किसी भी प्रकार के अन्न हाथी, ३ घोड़े और ५ प्यादे हो।
को कच्चे दही या तक्र, महा या छाछ के (२) सेना-जिस में ३ पत्तिदल हों। साथ खाने से मुँह की लार मिलते ही अगणित | ( ३) सेनामुख-जिसमें ३सेनादल हो।
सूक्ष्म पञ्चेन्द्रिय जीव (जन्तु) उत्पन्न हो । (४)गुल्म-जिसमें ३ सेनामुखादल हों। जाते हैं जो खाते खाते मुख ही में मरते | (५) वाहिनी-जिसमें ३ गुल्मदल हो। और नवीन नवीन उत्पन्न होते रहते हैं। (६) प्रतना-जिलमें३वाहिनीदल हो।
जिससे न केवल हिंसा का ही दोष लगता (७) चम्-जिसमें ३ प्रतनादल हो। है किन्त बद्धिबळ और आत्म शक्ति को भी। (८) अनीकिनी-जिसमे ३ चमूदल हों।
| हानि पहुँचती है। ( 8 )अक्षोहिणी-जिसमें १० अनीकिनी |
राई, नमक, हींग आदि मिश्रित जल में | दलहों।
उड़द, मूग आदि की पीठी के बड़े डाल अखय तीज-देखो शब्द "अक्षय तृतीया" | कर जो एक दो दिन या इस से भी
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