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अखाद्य
वृहत् जैन शब्दार्णव
अखाद्य
ऐसी विषैली होती है जिसके पड़जाने फल पोस्ता, जिसके दानों या बीजों को खशसे कंठमाला का तीव्र रोग पैदा हो । खाश या खशखश बोलते हैं, अरंड खरव्रज़ा जाता है।
या अरंडकाकड़ी, तिजारा, इत्यादि फल (घ) जूं पड़जाने से पेट में जलोदर रोग हो 'बहुवीजा' कहलाते हैं । इस प्रकार के जाता है।
सर्व ही फल मानसिक शक्तियों को बहुत ही (ङ) साधारण मक्षिका पड़ जाने से तुरन्त | हानिकारक हैं ॥ उलटी ( कय या वमन ) हो जाती है ।
(५) वृन्ताकया बैंगन (भट्टा या भाँटा)(च) बाभनी नामक कीड़ा कोढ़ उत्पन्न करता | यह एक प्रसिद्ध फल है । यह पित्तबर्द्धक
और बातरोगोत्पादक है । इसका शिर घिस(छ) शिर का घाल कंठरोग ( गला बैठना कर बवासीर के मस्सों पर लगाना यद्यपि
आदि) उत्पन्न करता या वमन का लाभदायक है परन्तु इसका खाना बवातार कारण होता और शरीर के अभ्यन्तर
रोगोत्पादक और बवासीर के रोगी तथा अंगों को हानि पहुँबाता है।
पित्तप्रकृति वाले को अधिक हानिकारक (ज) विच्छू फेफड़ों को हानि पहुंचाता है।
है। उदरशूल (वातशूल, पित्तशूल या दर्द (झ) बीर बहोटी नामक बरसाती रक्तवर्ण
कूलंज या कालिक पेन Colic pain) का कीड़ा गर्भपात करता है।
कारण है। आत्मोन्नति में बाधक और छह
मानसिकबल को हानिकारक है ॥ (अ) कंखजूरा शीघ्र प्राण नाशक है । (ट) खटमल मतली रोगोत्पादक है।
६) अथान (अथाना, सधान,संधाना,
अचार )-आम, नींबू, करोंदा, आमला, (3) झींगुर उदर पीड़ा उत्पन्न करता है।
करेला आदि कच्च या उबाले पदार्थों में यथा (ड) डांस मच्छर पिस्सू और पतङ्ग (परवाना) | विधि नमक, मिर्च, राई, तैल आदि डालकर
आदि पाचन शक्ति को विगाड़ते हैं जिन्हें तैयार करते और कई दिनों, महीनों तथा कई प्रकार के उदरविकार उत्पन्न या वर्षों तक रख छोड़ते और खाते रहते हैं करते हैं।
उन्हें 'अथाना' या 'अचार' कहते हैं। किसी (ढ) दीपक के उजाले पर आने वाले कीड़ों किसी की सम्मति में सर्व प्रकार के मुरब्बे
में से कई जाति के कोड़े ऐसे भी होते और गुलकन्द, शर्वत आदि भी 'अथाना' ही हैं जो भोज्य पदार्थों में पड़कर स्मरण हैं। यदि यह पदार्थ तईयारी के दिन ही ताजे शक्ति को बिगाड़ते और बुद्धि को मलीन | ताज़े खाये जावें तो इनकी गणना 'अथाने
में नहीं है। इन सर्व ही में शीघ्र ही त्रस (ण) कई प्रकार के वबाई रोगोत्पादक भी जीवोत्पत्ति का प्रारम्भ हो जाता है। और
बहुधा किसी न किसी प्रकार के कीड़े किसी किसी में तो मुख्यत: जिनमें पानी का ही होते हैं।
अंश अधिक होता है तईयारी से २४ घंटे इत्यादि, इत्यादि
पीछे से या तईयारी के दिन ही सूर्यास्त के (४) बहुबोजा-- जिस फल के एक ही पश्चात् से सूक्ष्म त्रस जीवोत्पत्ति होने लगती कोष्ठ में या कई कोष्ठ हो तो प्रत्येक कोष्ठ में है जिसकी संख्या कुछ ही दिन में किसी गूदे से अलिप्त कई कई बीज हो और जो उस किसी में तो इतनी बढ़ जाती है कि यदि फल को तोड़ने पर स्वयम् अलग गिर जायें, अथाने को हिला जुलाकर उलट पलट न जैसे अहिफेन ( अफ़ीम या अफ़यून) का किया जाय तो स्वेत या पीत फूलन या जाले
करते हैं।
mamme
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