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अखाद्य
वृहत् जैन शब्दार्णव
अखाद्य
उस मांस में प्रति समय दुर्गन्धि बढ़ती ही | और फिर उसे निचोड़ कर मधु प्राप्त जाती है। जिह्वा लम्पटी और मांस लोलुपो | करने में मक्खियां के सर्व अंडे बच्चे और इसको दुर्गन्धि दूर करने और स्वादिष्ट बनाने | कुछ न कुछ मक्खियां भी उसी के साथ के लिये इसमें नमक मिर्च मसाला आदि | निचोड़ ली जाती हैं जिससे उनके शरीर डालकर पकाकर या भूनकर खाते हैं तथापि का मांस और रुधिर भी मधु में सम्मिलत जीवीत्पत्तिमरण इसमें प्रत्येक अवस्था में | हो जाता है। बना ही रहता है जिससे खाने वाले को
४. छत्ता तोड़ कर लाने और लाकर अगणित त्रस हिंसा का महापाप लगता है।
दुकानदारों के हाथ मधु बेचने वाले मनुष्य ३. यदि किसी पंचेन्द्रिय प्राणों को प्रायः निर्दय चित्त और ऐसी नीच जाति बिना मारे स्वयम् प्राणान्त हुए प्राणी का | के मनुष्य होते हैं जिनके हाथ का द्रव मांस ग्रहण किया जाय तो यह मॉस और भी पदार्थ उच्च जाति के मनुष्य खाना अस्वीअधिक शीघ्रतासे सड़ता है और यद्यपि जिस | कृत करते हैं। प्राणी का मांस ग्रहण किया गया है उसके
५. उगाल होने के कारण मुख की लार मारने का दोष तो नहीं लगता है तथापि
उस में मिल जाने और सर्व अण्डों बच्चों व इसके भक्षण में अनन्तानन्त त्रस प्राणियों
कुछ मक्खियों का मांस रुधिर युक्त कलेवर के घात का और भी अधिक पाप है।
सम्मिलत हो जाने से उसमें उसी जाति के ४. हर प्रकार का मांस विषय वास- मधु के वर्ण सदृश अगणित सूक्ष्म जीवों की नाओं को बढ़ाता, दयालुता को हरता,
उत्पत्ति निरन्तर होती रहती है और इस क्रोधादि कषायों की ओर आत्मा को
लिए मांस समान दूषित है। आकर्षित करता और इस प्रकार आत्मोनति के वास्तविक मार्ग से सर्वथा हटा
६. कुछ रोगों में लाभ दायक होने पर
भी यह वात-रोगोत्पादक और मस्तिष्क देता है।
को हानिकारक है । कभी कभी मस्तक (१७) सारघ या क्षौद्र अर्थात् माक्षिक
| शूल भी उत्पन्न करता है। या मधु (शहद )-मुमाखियाँ जो कई
७. विषैली मक्खियों का या विषेले फूलों प्रकार के फूलों का रस चूस कर लातीं
से लाये हुए रस का मधु (जिसका पहिचाऔर लाकर अपने छत्त में उगल उगल |
नना कठिन है ) लाभ के स्थान में बहुत हानि कर संग्रह करती हैं उसे 'मधु कहते हैं। यह निम्न लिखित कारणों से अभक्ष्य है:
भी पहुँचाता है।
८. कोई कोई प्रकार का मधु ऐसा भी १. मक्खियों के मुँह का उगाल है।
| होता है जिसे अनजाने खा लेने से कुछ २. लाखों मक्खियों की बड़े कष्ट से | संग्रह की हुई जान से अधिक प्रिय अमूल्य |
| बेहोशी या राशी उत्पन्न हो जाती और सम्पत्ति है जिसे बलात् छोन लेना घोर |
| ठंढा पसीना शरीर पर आजाता है। पाप है जिसके लिये धर्म ग्रन्थों का बच्चन | बुद्धि भा कुछ नष्ट सा हो जाता है॥ है कि एक मधु छत्ते को तोड़ने या उसमें | (१८) हैयङ्गवीन या सरज या मन्थन से चुआ चुआ कर मधु ग्रहण कर लेने का | अर्थात् नवनीत ( नयनी घी या मक्खन )पाप एक सौ ग्राम फूक देने के पाप से | ताज़ा मक्खन कामोद्दीपक, मन्दाग्नि कारक भी कहीं अधिक है।
और चर्बी या मजा वर्द्धक है जिससे अना३. मक्खियों को उड़ाकर छत्ता तोड़ने | वश्यक मुटापा उत्पन्न होकर शरीर भारी |
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