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अगारी
वृहत् जैन शब्दार्णव
अगारी
का यथा शक्ति पालन करता, आदर्शआगारी प्रातःकाल जागते समय नित्य प्रति करता बनने के लिये प्रयत्न करता और अनागारी और यथा आवश्यक दोषों का प्रायश्चित्त भी बनने के लिये अभ्यास बढ़ाता है:
लेता है। (१) उपर्युक्त ५ अनुव्रत (अणुव्रत ),७ ऐसा योग्य पुरुष यदि संसारदेह-भोगादि शील ( ३ गुणब्रत और ४ शिक्षाबत )और से विरक्त होकर मोक्ष-प्राप्ति की उत्कट अभिअन्त-सल्लेखनामरण, इन १३ में से प्रत्येक के लाषा रखता हो तो अवसर पाकर यथा द्र ५, ५ अतिचार दोषों को भी बचाता और क्षेत्र कालं भाव या तो तुरन्त अनागारी ५, ५ भावनाओं को ध्यान में रखता है। (महाव्रती मुनि) बन जाता है या अपनी
(२) सप्त-दुर्व्यसन-त्याग, अष्टमूलगुण योग्यता व शक्ति अनुसार श्रावकधर्म की ग्रहण और त्रिशल्य वर्जन को भी अतीवार | निम्न लिखित ११ प्रतिमाओं (प्रतिक्षा, कक्षा | ढोषों से बचाकर पालन करने में प्रयत्न | या श्रेणी) में से कोई एक धारण करके शील रहता है।
उदासीन वृत्ति के साथ ऊपर को चढ़ता हुआ (३) २२ प्रकार के अभक्ष्य पदार्थों के यथा अवसर मुनिव्रत धारण करलेता है । भक्षण से बचता है ॥
वे ११ प्रतिमा यह है:-(१) दर्शन (२) (४) गृहस्थ धर्मसन्बम्धी ५३ क्रियाओं| व्रत (३) सामाथिक (8) प्रोषधोपवास (५) को यथा योग्य और यथा आवश्यक अपने | सचितत्याग (६) रात्रि भोजन त्याग (७) पद के अनुकूल पालता है।
ब्रह्मचर्य (८) आरंभ त्याग (6) परिग्रह त्याग (५) गर्भाधानादि २६ संस्कारों को शास्त्रा- (१०) अनुमति त्याग (११) उद्दिष्ट त्याग । नुकूल करने कराने का उद्यम रखता है। नोट :-२
(६) सम्यक्त को बिगाड़ने या मलीन ३ गुणवत-दिगब्रत, अनर्थदंडत्याग | करने वाले ५० दोषों को बचाता और ६३ | व्रत, और भोगोपभोगपरिमाण व्रत ॥ गुणों को अवधारण करता है।
४ शिक्षाव्रत-देशावकाशिक, सामा(७) श्रावक के २१ उत्तर गुणों का यिक, प्रोषधोपवास और अतिथि संविभाग। पालक और १७ नियमों का धारक बनता है। ७ दुर्व्यसन-जुआ, चोरी, वेश्या गमन,
(७ अवसरों पर मौन धारण करता| मद्यपान, मांसभक्षण, पर-स्त्री-रमण और और भोजन के समय के ४ प्रकार के ४४
मृगया ॥ अन्तरा-यों को बचाता है ॥
___८ मूलगुण-५ उदम्बर फल और ३ पंचशन अर्थात चल्हा. चौका, | मकार त्याग अर्थात बह फल, पीपल फल.
घा नित्य | ऊमर फल ( गूलर) कठूमर फल जंगली प्रति की घर की क्रियाएँ बड़ी शुद्धता से | अंजीर ), पाकर फल ( पिलखन या यथाविधि कराता और ऊपर से कोई जीव | पकरिया ), मधु, मांस,मद्य, इन अष्ट वस्तुओं जन्तु न पड़े इस अभिप्राय से पूजनस्थान के खाने का त्याग अथवा (१) पञ्च उदम्बर आदि ११ स्थानों में चन्दोवे लगाता है॥ फल त्याग (२) मधु त्याग (३) मांस त्याग
(१०) अपनी दिनचर्या और रात्रिचर्या (४) मद्य त्याग (५) देव बन्दना ( ६ ) शास्त्रानुकूल बनाता है।
जीवदया (७) दुहरे उजल निर्मल वस्त्र से (११) दिनभर के किये कार्यों की सम्हा- छना जलपान (८) रात्रि भोजन त्याग ॥ ल और उनकी आलोचना व प्रतिक्रमण ३ शल्य-माया, मिथ्या. निदान ॥ रात्रि को सोते समय और रात्रि के कार्यों की __२२ अभक्ष्य-ओला, घोर बड़ा (द्विदल), सम्हाल और उनकी आलोचना व प्रतिक्रमण | निश भोजन, बहुवीजा, बैंगन, सन्धान
मकार त्याग अथात् बड़ फल, पीपल फल
कालीन
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