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अकर
वृहत् जैन शब्दार्णव
अक्ष
कुमार" था जो श्रेणिक की पहिली रानी और पुत्र को राज्य सिंहासन देकर संयमी नन्दश्री ( सेठ इन्द्रदत्त की पुत्री ) से अपने होगया ॥ ननिहाल में पैदा हुआ था। श्रीमहाबीर (आगे देखो श० अजातशत्रु नोटों सहित ) ( अन्तिम २४ वें तीर्थङ्कर ) राजा श्रेणिक अकर दृष्टि-पीछे देखो शब्द "अक्रूर (१)" की स्त्री "चेलिनी" को सबसे बड़ी बहन "प्रियकारिणी" जो कुंडपुर (वैशाली या अक्रोश-साधु के चौमासा न करने योग्य वसाढ़ जि० मुज़फ्फरपुर के निकट ) नरेश स्थान जिसकी एक दो या तीनों ओर नदी "सिद्धार्थ' की पटरानी थी उसके पुत्र पहाड़ या हिंसक पशु हो ( अ० मा० ) ॥ अर्थात् इस "अक्रूर" के मुसेरे भाई थे। अक्ष-१. धुरा, धुरी, पहिया, कील, गाड़ी, इसका पिता श्रेणिक पहिले बहुत काल
रथ, तराज़ की डंडी, अभियोग (मुकद्दमा), तक बौद्धधर्मी रहा, पश्चात् उसे त्याग
चौसर, चौसर खेलने का पासा, कर्ष कर जिन धम्म का पक्का श्रद्धानी होगया
अर्थात् १६ माशे को एक तोल, जन्मान्ध, परन्तु अक्रूर (कुणिक ) ने अज्ञानवश इसे
ध्रुव तारा, तूतिया, नीला थोथा, सुहागा, वन्दीगृह में डालकर बड़ा कष्ट पहुँचाया
आमला, बहेड़ा, रुद्राक्ष, सर्प, गरुड़, और स्वयम् राज्यालन ग्रहण कर लिया
आँख, इन्द्रिय, आत्मा, रचना भेद, चार और "अजात शत्रु' नाम से प्रसिद्ध हुआ।
हाथ की लम्बाई (एक धनुष ). प्रस्तार माता चेलिनी के अनेक प्रकार से बारम्बार
रचना में कोई अभीष्ठ भंग॥ . समझाते रहने पर जब एक दिन इसे कुछ
२. ज्योतिष चक्र सम्बन्धी ८८ ग्रहों में समझ आई और अपने इस दुष्कर्म पर
से एक का नाम; ८८ ग्रहों में से २७ वां पश्चाताप करता हुआ पिता को बन्धन
ग्रह, राशि चक्र के अवयव; ग्रहा के भ्रमण मुक्त करने के विचार से उसके पास को
करने का पथ । (देखो शब्द "अघ” कानोट) जा रहा था तो दुःखी श्रेणिक ने यह समझ
.. ३. “मन्दोदरी" के उदर से उत्पन्न लङ्काकर कि न जाने क्या और कितना कष्ट
पति “रावण' के एक पुत्र का नाम भी और देने के लिये यह इधर आ रहा है
"अक्ष' था । यह अठारवें कामदेव बानर तुरन्त अपघात कर लिया जिससे "अक्रूर" वंशोत्पन्न 'पवनञ्जय' के पुत्र हनुमान के को भारी शोक हुआ और कुछ ही मास हाथ से, जब वह 'सीता' महाराणी का पीछे वारिषेण आदि अन्य भाइयों की पता लगाने के लिये लङ्का गया था, मृत्युसमान राज्य लक्ष्मी को क्षणिक और दुःख- प्राप्त हुआ । इसे "अक्षकुमार' और मूल जान उससे विरक्त हो अपने एक "अक्षयकुमार" नाम से भी बोलते थे।। छोटे भाई 'अजितशत्रु' को जिसका मन इसी नाम का काशमीर देश का भी एक | इन्द्रिय भोगौसे अभी तृप्त नहीं हुआथाअपने प्रसिद्ध नरेश था जो कामशास्त्र रचयिता लोकपाल नामक पुत्र का संरक्षक बनाकर काशमीर नरेश “वसुनन्दि" का पौत्र और
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