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वृहत् जैन शब्दार्णव
अक्षरलिपि
राक्षस ( ५ ) उड्डी ( ६ ) यावनी ( ७ ) तुरुष्की (८) कोरी ( ६ ) द्राविड़ी (१०) सैन्धवी ( ११ ) मालवी ( १२ ) नड़ी ( १३ ) नागरी ( १४ ) पारसी (१५) लाटी (१६ ) अनमित्त ( १७ ) चाणक्यी और (१८) मौलदेवी ॥
१८ लिपियों के नाम ( 'नन्दी सूत्र' ही में अन्य प्रकार से ) -- (१) लाटो ( २ ) चीड़ी (३) डाइली (४) काणड़ी ( ५ ) गुजरी (६) सोरठी (७) मरहठी ( ८ ) कङ्कणी ( ६ ) खुरासानी ( १० ) मागधी ( ११ ) सैंहली ( १२ ) हाड़ी (१३) कीरी ( १४ ) इम्बीरी ( १५ ) परतीरी (६) मसी (७) मालवी और (८) महायोधी ।
१८ लिपियाँ ( सन् ई. से लगभग ४५० वर्ष पीछे के जैन ग्रन्थ समवाय सूत्र और प्रज्ञापना सूत्र में ) - (१) ब्राह्मी (२) यवनानी ( ३ ) दशोत्तरिका (४) खरोष्ट्रिका ( ५ ) पुष्कर सारिका (६) पार्श्वतिका (७) उत्तरकुरुका ( = ) अक्षर पुस्तिका ( ६ ) भौमवहिका (१०) विक्षेपिका (११) निक्षेपिका ( १२ ) अङ्क ( ३ ) गणित ( २४ ) गन्धर्व (१५) आदर्शक (१६) माहेश्वर ( ७ द्राविड़ी और (१८) बोलिदी ।
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नीट ३ – ब्राह्मी लिपी से निकली भारत वर्ष की वर्त्तमान लिपियां निम्न लिखित हैं जो अकारादि क्रम से दी जाती हैं: ( १ ) अरौरा (सिन्धु प्रदेश में ) ( २ ) असमीया (३) उड़िया ( 3 ) ओझा ( विहार के ब्राह्मणों में ) ( ५ ) कणाड़ी ( ६ ) कराढ़ी (७) कायथी (८) गुजराती (६) गुरुमुखी ( पञ्जाब में सिक्खों के बीच ) (१०) ग्रन्थम् (तामिल ब्राह्मणों के मध्य ) ( ११ ) तामिल तुलू ( मंगलूर में ) ( १२ ) तेलगू
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अक्षर समास
( २३ ) थल ( पञ्जाब के डेराजात में ) ( ४ ) दोगरी ( काश्मीर में ) ( ५ ) देवनागरी ( १६ ) निमारी ( मध्य प्रदेश में ) ( १७ ) नेपाली (१०) पराची ( भेरे में ) ( १६ ) पहाड़ी (कुमायूँ और गढ़वाल में ) ( २० ) बणिया ( सिरसा और हिसार में ) (२१) बंगला ( २२ ) भावलपुरी (६३) बिसाती ( २४ ) बड़िया (२५) मणिपुरा (२६) मलयालम् (२७) मराठी ( २८ ) मारवाड़ी (२६) (३२) रोरी ( पञ्जाब में ) ( ३३ ) मुलतानी (३०) मैथिली (३१) मोड़ी २) लामावासी ( ३४ ) लुण्डी (स्यालकोट में ) ( ३५ ) शराकी या श्रावकी (पश्चिम के बनियों में ) ( ३६ ) सारिका पञ्जाब के डेरा जात में ) (३७) सिंहली ( ३६ ) शिकारपुरी और (४०) सईसी : उत्तर पश्चिम के भृत्यों में ) ( ३ ) सिन्धी । इन्हें छोड़ भारत के अनुद्वीपों में बम्र्मी, श्याम, लेयस, काम्बोज, पेगुयान और यवद्वीप और फिलिपाइन में भी नाना प्रकार की लिपियाँ चलती हैं ॥ अक्षरविद्या - विद्या के मुख्य भेद दो हैं:
( १ ) शब्द जन्य विद्या और ( २ ) लिंग जम्य - विद्या । इनमें से पहिली शब्द-जन्य विद्या के भी दो भेद हैं- अक्षरात्मक शब्द जन्य - विद्या और अनक्षरात्मक शब्द-जन्य विद्या; इन दो में से पहिली "अक्षरा त्मक - शब्दजन्य विद्या" ही का नाम लाघव के लिए " अक्षर विद्या" भी है। कोष, ज्याकरण, छन्द, अलङ्कार आदि सर्व विद्याएँ जिनसे किसी भाषा ज्ञान या साहित्य-ज्ञान की पूर्णता होती है इस " अक्षर विद्या" गर्भित हैं ॥
अक्षरसमास-अक्षरों का मेल; एक अक्षर से अधिक और एक 'मध्यमपद' से कम अक्षरों का समूह ॥
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