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अक्षसंक्रम
वृहत् जैन शब्दार्णव
. अक्षयतृतीया
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चार ) (२) अक्षमृक्षण (३) उदराग्नि- दो भेदों “सक्षय अनन्तानन्त” और “अक्षयप्रशमन, (४) भ्रमराहार और ( ५ ) गर्त अनन्तानन्त' में का दूसरा भेद यह पूर्ण (श्वभ्रपूर्ण )-में से एक वृत्ति का "अक्षय अनन्त" है यह वह राशि या नाम; तथा 'अपहृत संयम' सम्बन्धी 'अष्ट संख्या है जिसमें नवीन वृद्धि न होने पर शुद्धि'-(१) भाव शुद्धि (२) काय भी कुछ न कुछ व्यय होते होते कभी जिस शुद्धि (३) विनय शुद्धि (४) ईर्यापथ- का अन्त न हो । इसके विरुद्ध "सक्षयशुद्धि (५) भिक्षाशुद्धि (६) प्रतिष्ठापना अनन्त' या 'सक्षय-अनन्तानन्त" वह शुद्धि (७) शयनासन शुद्धि (८) वाक्य मध्यम अनन्तानन्त राशि या संख्या है शुद्धि-एक भेद "मिक्षाशुद्धि' के जिस में नवीन वृद्धि न होने पर यदि उस उपर्युक्त पाँच भेदों में से एक भेद का नाम; में से लगातार कुछ न कुछ व्यय होता रहे अर्थात् 'अक्षमृक्षण' यह 'भिक्षावृत्ति' या तो कभी न कभी भविष्यकाल में उस का 'भिक्षाशुद्धि' है जिस में भिक्षुक सुरस | अन्त हो जाय ॥ विरस भोजन के विचार रहित केवल इस | नोट १.-"उत्कृष्ट अनन्तानन्त" संख्याअभिप्राय से शुद्ध और अल्प भोजन
मान के २१ भेदों में से अतिम २५ वां भेद है। ग्रहण करे कि जिस प्रकार गाड़ीवान
जो कैवल्यज्ञान की बराबर है और सर्वोत्कृष्ट
"अक्षय अनन्त' है ॥ अपनी इष्टवस्तु से भरी गाड़ी को उस की
नोट २-( १) सिद्धिराशि (२) धुरी घृत से बांग कर देशान्तर को अपने प्रत्येकबनस्पति-जीवराशि, (३) साधारण वांछित स्थान तक ले जाता है। उसी बनस्पति जीवराशि या निगोदराशि (४) प्रकार मुझे भी धर्म रूपी रत्नों से भरी इस पुद्गल परमाणु राशि (५) भूत, भविष्यत् शरीर रूपी गाड़ी को उस का उदर रूपी
और बर्तमानतीनोंकाल के समय और (६) अक्ष (धुरा) भोजन रूपी घृत से बांग
सर्व आकाश-लोकालोक-के प्रदेश, यह छहों कर अपने समाधिमरण रूपी इष्ट स्थान
महाराशि "अक्षय अनंत" हैं । इन में से प्रत्येक
राशि अक्षय अनन्त होने पर भी पहिली राशि तक ले जाना है ॥
से दूसरी, दूसरी से तीसरी, तीसरी से
चौथी और चौथी से पांचवों और छटी राशि अक्षसंक्रम-पीछेदेखोशब्द अक्षपरिवर्तन”
अनन्त अनन्त गुणी बड़ी हैं । अक्षसञ्चार-पीछेदेखो शब्द'अक्षपरिवर्तन'
___ नोट ३-आगे देखो शब्द "अङ्कगणना" ॥
अक्षय तृतीया-अक्षय तीज, अखय तीज, प्रक्षयअनन्त (अक्षयअनन्तानन्त)-क्षय आखा तीज, बैसाख शु० ३, सतयुग के
और अन्त रहित, जिस का न कभी आरम्भ का दिन । कृत्तिका या रोहिणी बिनाश हो और न कमी अन्त हो; __ नक्षत्र का योग यदिइस तिथि (बैसाख शु० अलौकिक संख्या मान के २१ भेदों में का ३) को हो तो अति उत्तम और शुभ है। एक भेद जो मध्यम अनन्तानन्त है उसके इसी तिथी को हस्तिनापुर के राजा |
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