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अक्षयपद
वृहत् जैन शब्दार्णव
अक्षयपदाधिकारी
तक नित्यप्रति “एकाशना", फिर भाद्रपद कृ० १० को 'प्रोषधोपवास किया जाता है। इसी प्रकार १० वर्ष तक हर वर्ष करने के पश्चात् यथा शक्ति उद्यापन पूर्वक पूर्ण हो
जाता है । अक्षयपद--अविनाशीपद, मुक्तिपद, निर्वाण
पद, सिद्धपद, शुद्धात्मपद, निकल पर मात्म पद॥
यह महान सर्वोत्कृष्ट पद तपोबल से (जिस के द्वारा सर्व प्रकार की इच्छाओं के निरोध पूर्वक आत्मा के सर्व वैभाविक भावों और विकारों को पूर्णतयः दूर करने का निरन्तर प्रयत्न किया जाता है ) सर्व सश्चित कर्मों को क्षय करके आत्मा को पूर्ण निर्मल कर लेने पर प्राप्त होता है । यह पवित्र निर्मल पद ही आत्मदेव का“निज स्वाभाविकपद" या "निज अनुभूति" है जो अनन्तानन्त ज्ञानादि शक्तियों का अक्षय अनन्त भंडार है और जिसे यह अनादिकर्म बन्धके प्रवाह में रुलता हुआ संसारी जीव भूल रहा है ॥ अक्षयपदाधिकारी-मुक्ति पद प्राप्त करने के अधिकारी, अर्थात् जो अवश्य मोक्ष पद प्राप्त करें। इस अधिकार सम्बन्धी नियम निम्न प्रकार हैं:
१. तद्भव-सर्व तीर्थङ्कर, सर्व केवली, अष्टम या इससे उच्च गुण स्थानी क्षायक सम्यक-दृष्टि, विपुलमति मनःपर्ययज्ञानी, परमावधिज्ञानी, सर्वावधिज्ञानी ॥
२. द्वितीय भव में प्रथम स्वर्ग का "सौधर्म इन्द्र", प्रथम स्वर्ग के इन्द्र की शची "इन्द्राणी", इसी के "चारोंलोकपाल'' -सोम, वरुण, कुवेर, यम-तीसर, पाँचवें,
नवे, तेरह, और प. द्रढे स्वर्गों के सनत्कुमार, ब्रह्म,शुक्र, आनत, और आरण नामक 'सर्व दक्षणेन्द्र" ; “सर्व लोकान्तिकदेव" ; "सर्व सर्वार्थ सिद्धि के देव" ; "क्षायक सम्यक्ती नारको जीव'' या देव पर्यायी जीव जो १६ कारण भावना से तीर्थङ्कर नामकर्म का बन्ध करें।
३. तृतीय भव में-जो मुनि १६ कारण भावना से तीर्थङ्कर गोत्र बाँधे ॥ - ४. द्वितीय या चतुर्थ भवमे-पञ्च अनुत्तर में से विजय, वैजयन्त, जयन्त, और अपराजित इन चार विमान तथा नव अनुदिश विमानवासी देव ।। ५. चतुर्थ भव तक-क्षायिक सम्यक्ती ॥ ६. अष्टम भव तक-समाधि मरण करने वाले भावलिङ्गी मुनि ॥
७. अधिक से अधिक बार उपशमश्रेणी चढ चुकने वाला उपशम सम्यम्दृष्टी और अधिक से अधिक ३२ बार सकल संयम को धारण करने वाला जीव अन्तिम बार अवश्य मोक्ष पद प्राप्त कर लेता है। ___८. मोक्ष पदाधिकारी अन्य जीव-सर्व निकट भव्य और दूर भव्य जीव, उपशम सम्यग्दृष्टी, क्षायोपशमिक-सम्यग्दृष्टी,चक्री, बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण, कुलकर, तीथङ्करों के माता पिता, कामदेव, रुद्र, नारद, यह पदवीधारक पुरुष सर्व मोक्ष पदाधिकारी हैं जो आगे पीछे कभी न कभी नियम से मोक्ष पद प्राप्त कर लेते हैं ।
त्रि. ५४८, गो.क ५२५,६१६, तत्वा.) | अ. ४ सू०. २६, मूला. ११८, ल. गा.१६४, धर्मः सं० श्लो७४ पृ. ८०, गो. जी.६४५, क्षे. गा. १, इत्यादि ।
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