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अकस्मात् भय
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वृहत् जैन शब्दार्णव
अकाम निर्जरा
व मलीन करने वाले ५० दोषों या दूषणों में | ६ अभक्ष्य-(१) मधु (२) ऊमर फल से एक दोष यह अकस्मात् भय' है और (३) कठूमर फल (४) पाकर फल सम्यक्ती जीव के ६३ गुणों में से अक- ५) बड़फल ( ६ ) पीपल फल ॥ स्मात् भय--रहितपना" एक गुण है ॥ २ अतिचार--(१) अन्वदृष्टि प्रशंसा (२) नोट १-५० दोष निम्न प्रकार हैं:
अन्य दृष्टि संस्तव ॥ २५ मलदोष-१) शंका (२) कांक्षा (३. ५० जोड़
विचिकित्सा (४) मूढदृष्टि ( ५ ) अनुप | नोट २-उपर्युक्त २५ मलदोषों मेंले आदि गूहन ( ६ ) अस्थितिकरण (७) अवा- के आठ "अष्टदूषण" इनसे अगले आठ अष्ट त्सल्य (८ , अप्रभावना; (६) जातिमद | | मद, इनसे अगले ३ "त्रिमूढ़ता” और इनसे (१०) कुलमद (११) धनमद या लाभमद अगले अर्थात् अन्तिम छह षट अनायतन' (१२)रूपमद (१३) बलमद (१४ विद्या या | कहलाते हैं । पांडित्य मद ( १५ ) अधिकार या ऐश्वर्य
नोट ३–सम्यक्ती के ४८ मूलगुण और मद (१६) तप मदः (१७) देवमूढ़ता
१५ उत्तरगुण सर्व ६३ गुण होते हैं जो इस ( १८ ) गुरुमूढ़ता (१६) लोक मूढ़ता;
प्रकार हैं-२५ मलदोष रहितपना, ८ संवेगा(२०) कुदेव- अनायतन-संगति (२१)
दि लक्षण, ५ अतीचार रहितपना, ७ मय कुगुरु अनायतन-संगति ( २२ ) कुधर्म
रहितपना और ३ शल्य रहितपना, यह ४८ अनायतन-संगति (२३) कुदेव-पूजक
मूलगुण । और ५ उदम्बर फलत्याग, ३ अनायतन-संगति (२४) कुगुरु-पूजक अना
मकार त्याग और ७ व्यसन त्याग, यह १५ यतन-संगति (२५) कुधर्म-पूजक-अना
उत्तर गुण ॥ यतन-संगति ॥ ७ व्यसन-(१) द्यूत क्रीड़ा(जुआ खेलना) __ नोट ४-उपर्युक्त प्रत्येकपारिमाषिक शब्द (२) वेश्या सेवन (३) पर-स्त्री रमण (४) का अर्थ आदि यथा स्थान देखें ।। चौर्य कर्म (५) मांस भक्षण (६) मद्य पान ( शराब पीना ) (७) मृगया
अकाम-कामना या इच्छारहित, अनिच्छा; (शिकार खेलना)॥
सर्व इच्छाओं का अभावरूप मोक्ष ॥ ३ शल्य- १) माया शल्य ( २ ) मिथ्या अकामनिर्जरा-बिना कामना या बिन शल्य ( ३) निदान शल्य ॥
इच्छा होने वाली निर्जरा; अपनी इच्छा बिना ७ भय-(१) इह लोक भय (२) पर- केवल पराधीनता से निज भोगोपभोग का
लोक भप (३) वेदना भय (४) मरण निरोध होने और तीव्र कषाय रहित भूख, भय (५) अनरक्षा भय (६) अगुप्त प्यास,मारन, ताड़न रोगादिकष्टसहन करने भय (७) अकस्मात् भय ॥
से या प्राण हरण होजाने से, तथा मिथ्या
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