________________
*
ॐ*
श्री जिनाय नमः ॥ * वृहत् जैन शब्दार्णव र
- **--- बिघ्न विनाशक वृषभ को, हाथ जोड़ शिर नाय।। रीति गिरा ज्ञाता गणप, लागू तिन के पाय ॥
लघु बल अति पर बाहुबल, शब्दार्णव गम्भीर । • तरण हेतु साहस कियो, शरण लेय महावीर ॥
vvv.....uvvvvv
६. सादृश्य वाचक, जैसे “अब्राह्मण"
(ब्राह्मण सदृश अन्य द्विज वर्ण, अ-( १ ) अक्षर-प्राकृत संस्कृत व इनसे क्षत्रिय या वैश्य ); निकली हुई प्रायः सर्व ही भाषाओं ७. दुर्व्यवहारवाचक, जैसे अनाचार" की वर्णमाला का यह पहिला अक्षर | (दुराचार )॥ है । यह स्वर वर्ण का प्रथम अक्षर है।
नोट-यह अक्षर जब किसी स्वर से (२) अव्यय- १. अभाव वाचक, जैसे प्रारम्भ होने वाले शब्द के पहिले लगाया जाता 'अलोक' (लोक का अभाव ); है तो "अन्” हो जाता है जैसे 'उदरी' के २. विरोधवाचक, जैसे 'अधर्म' ( धर्म |
पहिले 'अ' लगाने से 'अन्-उदरी' - अनुदरी विरुद्ध पाप);
होगया, ऐसे ही 'आचार' 'अन्-आचार'=
अनाचार इत्यादि । ३. अन्यपदार्थवाचक, जैसे 'अघट' (घट के अतिरिक्त अन्य कोई
(३) संकेत-१. अर्हन्त अर्थात् सकल पदार्थ );
परमात्मा, जीवनमुक्त आत्मा, परम-पूज्य
या परम-स्तुत्य आत्मा, परम आराधनाय ४. अल्पतावाचक, जैसे 'अनुदरी'
आत्मा; २. अशरीर अर्थात् सिद्व या विदेह (अल्पोदरी, जिस का उदर अल्प
मुक्त या निकल परमात्मा या अजरामर अर्थात् छोटा हो);
परम-शुद्ध आत्मा; ३. अनन्त कर ५. अप्रशस्त्यवाचक, जैसे 'अकाल' | अङ्क ५ ब्रह्म, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शि, (अयोग्य काल या अशुभ काल); | रक्षक, पोषक, वायु, वैश्वानर, मेव, सृष्टि,
com
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org