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अकर्ण
वृहत् जैन शब्दार्णव
अकलङ्क
ब्राह्मणों के देशप्रसिद्ध परम विद्वान् पुत्र थे | जो क्रम से ५००, ५००, ५००, ५००, ५००, ३५०, ३५०, ३००,३००.३००,३०० विद्यार्थियों के गुरू थे।
(हरि. पु., महाचर पु, वर्द्ध च.) अकर्ण-लवण समुद्र में समुद्र तट से ७०० योजन की दूरी पर काL १७वां अन्तरद्वीप; इस अन्तरद्वीप में रहने वाले मनुष्य ।
(अ० मा०) अकर्मन्-कर्मरहित, फर्मास्रवरहित(अ.मा.)
अकर्मभूमि-भोगभूमि; असि, मसि, कृषि आदि षटकर्म वर्जितभूमि; कल्पवृक्षोत्पादक भूमि । ( आगे देखो शब्द "भोग भूमि" ) अकांश-कर्मरजरहित,घातियाकर्मरहित, स्नातक, केवली अरहन्त (भमा०) ॥
नगरके राष्ट्रकूटवंशीय कर्कराज-पुत्र साहस. तुङ्ग' (कृष्णराज अकालवर्षशुभतुङ्ग ) के मन्त्रः 'पुरुषोत्तम' के बड़े पुत्र थे। इनकी माता का नाम पद्मावती और लघु भ्राता का नाम 'निःकलङ्क' था । यह दोनों भाई बालब्रह्मचारी थे और विद्याध्ययन कर छोटी अवस्थाहीमें अद्वितीय विद्वानहोगए। इन्होंने पटने में जाकर कुछ दिन तक बौद्धधर्म की शिक्षा भी प्राप्त की थी। यह अकलङ्क देवस्वामी "एकसंस्थ"थे अर्थात् इन्हें कठिन सेकठिन श्लोक आदि केवल एक ही बार सुन लेने पर याद हो जाते थे। इसी प्रकार इनका लघु भ्राता "द्विसंस्थ" था । एकदा बौद्धों के हाथ से अपने छोटे भाई के मारे | जाने के पश्चात् वोर नि० सं० १४०० । सन् ८५५ ई.) में इन्होंने कांची या कलिङ्गके ( उड़ीसा के दक्षिण, मदरास प्रान्त में गोदावरी नदी के मुहाने के आस पास का देश) देशान्तर्गत 'रत्नसश्चयपुर' के बौद्ध धर्मी राजा "हिमशील" की राज सभा में बौद्धों के एक प्रधान आचार्य 'संघश्री' को अनेक बौद्ध पंडितों और अन्य विद्वानों की उपस्थिति में ६ मास तक नित्य प्रति शास्त्रार्थ कर कं परास्त किया
और बौद्धों की बढ़ती हुई शक्ति को अपने पांडित्यबल से लगभग सारे भारत देश में निर्बल कर दिया । यह भट्टाकलङ्क देव थे तो सर्व ही विषयों के पारंगत विद्वान, पर न्याय के अद्वितीय पंडित थे जिसका प्रमाण इनके रचे निम्नलिखित ग्रन्थों से भले प्रकार मिल जाता है:(१) वृहत्रयी (वृद्धत्रयी)
अकलङ्कः-इस नाम के भी निम्नलिखित कई इतिहास-प्रसिद्ध पुरुष हुए:(१) 'अकलङ्कदेव स्वामी या 'भट्टाकलङ्कदेव' नाम से प्रसिद्ध एक जैनाचार्य-यह अब से लग भग ग्यारह सौ (११००) वर्ष पूर्व वीर निर्वाण की चौदह्रीं शताब्दी में तथा धिक्रम की नवीं शताब्दी में देव-संघ में हुए । यह कर्णाटक और महाराष्ट्र देशों की प्राचीन गजधानी 'मान्यखेट' (जिसे आज कल 'मलखेड़' कहते हैं, और जो हैदराबाद रेलवे लाइन पर मलखेड़रोडस्टेशन से ४ या मील दूरी पर है )
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