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( १ ) वृहत् जैन शब्दार्णव
अकलङ्क
अकलङ्कप्रतिष्ठा पाठ
की वय में मिती आषाढ़ शु० १४ को
अकलक कथा-प्रथमानुयोग के एक जैन 'धर्द्धमान' जी भट्टारक के स्वर्गवास होने
कथा-ग्रन्थ का नाम है जिसमें श्री "अकलङ्क पर उनसे तीन दिन पीछे उनकी गद्दी के
देव स्वामी' की कथा वर्णित है । इस नाम पट्टाधीश हुए । यह एक वर्ष ३ मास और
की एक कथा भट्टारक "प्रभाचन " द्वितीय २४ दिन पट्टाधीश रह कर ४८ वर्ष ३ मास |
की रचित है जो विक्रम सम्वत् १५७१ में और २४ दिन की वय में मिती कार्तिक
विद्यमान थे। दूसरी इली नाम की कथा शु० . ८ वीर निर्वाण सम्वत् १७४६,
श्री “सिंहनन्दि". जा कृत है जो श्री विक्रम सम्बत् १२५७ में स्वर्गवासी
आराधना कथा कोश, नेमनाथ पुराण आदि हुए । जाति के यह “अठसाखा पोर
कई ग्रन्थों के रचयिता हैं । श्री गुणकीर्ति वाल" थे॥
जी के शिष्य यशःकीर्ति जी की रचित भी (४) "अकलङ्क चन्द्र" नाम से प्रसिद्ध इस नाम की एक कथा है । एक घनधारी भट्टारक-यह अब से साढ़े चार सौ (४५० ) वर्ष पहिले वीर निर्वाण | अकलङ्क चन्द्र देखो शब्द “अकलङ्क" ॥ सम्वत् २००० के लगभग विक्रम की १६
अकलङ्क चरित-यह सुजानगढ़ निवासी वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुए । “अक
पं० पन्नालाल बाकलीवाल रचित 'स्वामी लङ्कप्रतिष्ठापाठ" या 'प्रतिष्ठाकल्प' नामक अन्ध इनही का रचित व संग्रहीत है ॥
भट्टाकलङ्क देव' का एक चरित्र हिन्दीभाषा
में है जो अकलङ्क स्तोत्र मूल और भाषा ( देखो ग्रन्थ 'वृ० वि चरितार्णव' )
गद्य व पद्य सहित बम्बई से प्रकाशित हो (५) धातकीखंड द्वीप में विजयमेरु चुका है। के दक्षिण भरत क्षेत्रान्तर्गत आर्यखंड की अतीत चौबीसी के चतुर्थ तीर्थङ्कर का नाम
| अकलङ्कदेव-पीछे देखो शब्द “अकलङ्क" भी श्री अकलङ्क था । ( आगे देखो शब्द अकल देव भट्ट-देखोशब्द "अकलङ्क" "अढ़ाई द्वीप पाठ" के नोट ४ का कोष्ठ ३)॥
अकलकादेव भट्टारक-पीछे देखो शब्द (६ ) पुष्कराद्ध द्वीप की पूर्व दिशा में | "अकलङ्क" ॥ मन्दर मेरु के दक्षिण भरतक्षेत्र के अन्तर्गत अकल देव स्वामी-पीछे देखो शब्द आर्यखंड के वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के २१ वें तीर्थङ्कर का नाम
'अकलङ्क" || जो "मृगाङ्क" नाम से भी प्रसिद्ध थे। अकलङ्क प्रतिष्ठापाठ-यह विक्रम की १६ ( आगेदेखो श० "अढाई द्वीप पाठ' के नोट वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुए अकलंक भट्ट ४ का कोष्ठ ३)॥
रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है जिसका विषय
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