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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
मध्य देश की भाषा का प्रभाव है, वह उनको पालि की ओर खींचता
पालि शब्द का अर्थ
जैसा कि पहले लिख चुके हैं कि पालि भाषा एवं पालि के शब्दार्थ में बहुत मतभेद है। वस्तुतः पालि शब्द किसी भाषा का द्योतन नहीं करता। इसका अर्थ होता है-'मूलपाठ' या 'बुद्धवचन'। 'अट्ठकथा' से मूलपाठ की भिन्नता प्रकट करने के लिए इस शब्द का व्यवहार होता था। जैसे-इमानि ताव पालियं अट्ठकथायं पन (ये तो 'पालि' में हैं, परन्तु अट्ठकथा में) अथवा नेव पालियं न अट्ठकथायं आगतं (न यह 'पालि' में है न अट्ठकथा में)। पालि भाषा न कहकर केवल 'पालि' शब्द से ही 'थेरवाद' के 'धार्मिक साहित्य' की भाषा को अभिहित करने की प्रथा आधुनिक काल में चल पड़ी है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि पालि शब्द की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार के विचार प्रकट किए हैं। पं० बिधुशेखराचार्य ने पालि शब्द की उत्पत्ति संस्कृत पङ्क्ति ' शब्द से की है। इसके परिवर्तन का क्रम पक्ति > पन्ति > पत्ति > पट्ठि > पल्लि > पालि किया है। बौद्ध साहित्य में भी पालि का अर्थ 'पङ्क्ति ' किया गया है। मैकर बालेसर महोदय ने 'पालि' शब्द की व्युत्पत्ति 'पाटलिपुत्र' से की है। किन्तु यह व्युत्पत्ति भाषा-वैज्ञानिक आधार पर नहीं है। भिक्षु जगदीश काश्यप ने पालि महाव्याकरण में पालि शब्द की व्युत्पत्ति 'परियाय' (सं० पर्याय) शब्द से की है। इस मत के अनुसार परियाय > पलियाय > पालियाय और तत्पश्चात् केवल पालि शब्द बना और व्यवहार में आया। पालि शब्द की उत्पत्ति 'पा' धातु में 'णिच् प्रत्यय 'लि' के योग से निष्पन्न होती है। प्राचीन लेखकों ने ‘पालि' शब्द की व्युत्पत्ति अत्थान पाति रक्खतीति तस्मा पालि (अर्थों की रक्षा करती है, इसलिए पालि) पा धातु से की है। इससे 'पालि साहित्य' के संकलन एवं लिपिबद्ध किये जाने के इतिहास पर भी प्रकाश पड़ता है। पालि शब्द की यह व्युत्पत्ति समुचित प्रतीत होती है।