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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
निष्कर्ष यह कि नमिसाधु के कथन की कई मुख्य विशेषताएँ हैं:___1. वह अपभ्रंश को प्राकृत से ही विकसित मानता था।
2. उसके सामने जो विविध प्रकार के नाम थे उनमें से उसने तीन का ही उल्लेख किया है-(i) उपनागर, (ii) आभीर और (iii) ग्राम्या।
3. अपभ्रंश भाषा के विषय में बताते हुए उसने कहा है कि इन तीन से भी अधिक भेद हो. सकता हैं जो कि सबसे बड़ी भारी विशेषता है।
4 लोगों को वह संकेत देता है कि अपभ्रंश सीखने का लोक ही सबसे बड़ा साधन है। इन सभी से बढ़कर अन्तिम विशेषता यह है कि नमिसाधु के समय में अपभ्रंश की बहुत सी बोलियाँ सामान्य जनता में प्रचलित थीं। इनका काल विक्रम सम्वत् 1125-1069 ई० है।
___दूसरी बात यह कि नमिसाधु ने अपभ्रंश को उतना ही व्यापक बताया है जितना कि मागधी को। पहले हम देख चुके हैं कि भरत के समय में ही विभाषा के अन्तर्गत आभीरों की जड़ जमी हुई थी। आभीरी बोली उस समय भी सिन्धु, मुल्तान और उत्तर पंजाब में बोली जाती थी। बाद में उसने भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान पाकर साहित्य का रूप धारण कर लिया और अपभ्रंश भाषा आभीर आदि के नाम से प्रसिद्ध हो गयी। दण्डी पर विचार करते समय इस पर विचार हो चुका है। यही बात उसके वाक्य के कहने का मतलब है-'आभीरी भाषा का जो वर्णन किया गया है वह अपभ्रंश के अन्तर्गत आती है। यह कभी-कभी मागधी में भी पायी जाती है। इसका केवल यही मतलब है कि प्रचलित कथ्य (Spoken) मागधी में अपभ्रंश बोली प्रचलित थी। ग्राम्या से तात्पर्य होता है साहित्यिक अपभ्रंश से भिन्न ग्रामीण बोली।