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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
(अ) संस्कृत की धातुओं में भी :-दिण्ण (*दिद्र); रुण्ण (*रुद्न) मुक्क (*मुक्-न): नत्त (*नृत्त) आदि इन सभी का रूप-दत्त, रुदित, मुक्त, नर्तित-परिनिष्ठित संस्कृत में होगा।
(ब) देशी धातुओं के विषय में-घित्त < Vधिव या घिप्प, अभित्त < अभिद, अभिदिय भी होता है। विचित्त < वि-vचिव (हेम० 4/257-8); छिद्द < Vछह क्षिप,-धुक्क < Vधउक आदि। देशी धातुओं की रचना में ये अनिट् की तरह हैं।
अपभ्रंश में प्रमुख कर्म वाच्य भूतकालिक कृदन्त चिह इय (°इअ), "इउ ही हैं, यद्यपि प्राकृत के उक्त अन्य रूप भी पाये जाते हैं। डॉ० तगारे ने (8148) पूर्वी अपभ्रंश के कतिपय 'ल' वाले निष्ठा प्रत्यय का उदाहरण दिया है-रून्धेला, आइला, गेला । उद्योतन की कुवलयमाला कहा में भी कुछ °ल रूप पाये जाते हैं:-दिण्णले (दा) गहिल्ले (ग्रह) आदि।
(iii) * (इ) त-क-जायओ (=जातः); मुक्कउ (मुक्तकः)। (iv) * (इ) तल (ल) अ :- मुक्कलओ ( मुक्तलकः)।
(v) * न + इल्ल + क :- दिण्णेल्लयम् ('था' दिया); हेइल्लियाणम् (हत-इल्ल-क,-सम्बन्धु, पुं०); आणिएल्लियम् (< आनित-इल्लक कर्म, ए० व०) वसु० ।
प्रारम्भिक प्राकृत और अपभ्रंश में भूतकालिक कृदन्त के रूप हैं-अप०–पडिल < /पत्, फुलिल्ल-< स्फुर, पुच्छिल्ला, हसिरप्रा०-कल=कृत्, मुस–मुषित, खज्ज-खादित; रोइरी (स्त्री०)-रुदित ।
संन्देश रासक' में 'इय, 'इयउ वाले रूपों के अतिरिक्त "ई ("इय का समाहृत रूप) वाले स्त्रीलिंग रूप भी मिलते हैं :चडी, विबुद्धी, तुट्टी आदि। इन रूपों का आधुनिक आर्यभाषा हिन्दी और गुजराती की ओर झुकाव है। कतिपय उदाहरण संस्कृत निष्ठा रूपों के ध्वनि नियमों के अनुसार परिवर्तित रूपों के भी मिलते
हैं।