Book Title: Hemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Author(s): Ramanath Pandey
Publisher: Parammitra Prakashan

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Page 475
________________ शब्द कोश शब्द कोश हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण में आठवें अध्याय के चतुर्थ पाद के अपभ्रंश दोहों में जितने शब्द आये हैं उन शब्दों का कोश अकारादि क्रम से सूत्रों की संख्या के साथ दिया जाता है। साथ ही साथ अपभ्रंश शब्दों का हिन्दी अर्थ भी दिया जाता है । हिन्दी अपभ्रंश अ अइ-425.1 अइ-तुंगत्तण-390 अइ-मत्त - 345 अइ-रत्त - 438.2 अइस - 403 अङ्ग - 332.2, 357.2 अंगुलि - 333 अंतरु - 350, 406.3, 407.1,408.1, 434.1 अंडी - 445.3 अंधारय - 349.1 अंबण - 376.2 अंसु-जल- 414.3 अंसू सास -431.1 31-fcb31-396.4 अक्ख् -350.1 अति अत्यधिक ऊँचा अतिमत्त अतिरक्त ऐसा अंग अंगुली अन्तर आँत अंधकार अपना आंसु जल कावास नहीं किया हुआ कहना अपभ्रंश अक्खि - 357.2 अखइ - 414.2 आगलिअ नेह निवट्ट-332.1 अग्ग - 326, 391.2. 422.12 अग्गल - 341.2, 444.2 अगला अग्गी -- 343.1, 2 अग्नि अग्गिट्टउ - 429.1 अंगीठी √अग्घ्–385.1 31-fafa4-423.1 अच्छ - 388,406.3 अज्ज - वि - 423.3 अज्जु - 343, 418.2 37-311237-439.3 अणुणे-414.4 अणुत्तर- 372.2 445 हिन्दी आँख अक्षय अगलित स्नेह से निवृत आगे हो (अर्थ) अचिंतित होना आज भी आज अकलुषित मनाना (अनुनय करना) उत्तरहीन (अनुत्तर)

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