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धातुसाधित संज्ञा
अः - अ प्रत्यय क्रिया वाचक संज्ञा में लगता है । स्त्रीलिंग में 'अ' की जगह 'ई' होता है । उदाहरण :- (पुल्लिंग-नपुंसक०) घुंट, चूर, वंच, सिक्ख ।
( स्त्री०) - उट्ठ° धत्त, धर, 'बईस, मब्भीस-डी,
(सुहच्छिय) ।
है ।
इरः- ताच्छिल्य वाच्यकः जंपिर, भमिर ।
उअः - कर्तृवाचक- पवासुअ ।
णः - इसका संयोजक स्वर 'अ' होता है।
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इन उदाहरणों में स्वार्थिक 'ड' की जगह 'अ' प्रत्यय होता
सुहच्छ-डी,
क्रिया वाचक:- अव्मत्थण, अत्थमण, असण, अंखण, आलवण, एच्छण, करण, गिलण, निवडण, परिहण सुमरण, अक्षण,
भसणय, मारणय, रूसणय |
कर्तृवाचक:- अब्भुद्धरण, मग्गण;
ताच्छिल्यवाचकः–(स्वार्थिक 'अ' के साथ) कुट्टणय, बोल्लणय,
धात्वादेश
हेमचन्द्र ने जहाँ अपभ्रंश व्याकरण में सुबन्त ( शब्द रूप ) के लिये अत्यधिक सूत्रों का विधान किया है वहाँ धात्वादेश के लिये बहुत ही कम सूत्रों का प्रयोग किया है । दोहों में प्रयुक्त धातु रूपों को देखते हुए धात्वादेश नगण्य सा प्रतीत होता है । इसी पर डॉ० गुणे एवं दलाल का कहना है कि हेमचन्द्र का प्राकृत धात्वादेश वस्तुतः अपभ्रंश के धात्वादेश हैं। कारण अपभ्रंश दोहों में प्राप्त धातु रूपों का निर्माण एवं विकार उन्हीं प्राकृत सूत्रों से होता है। इस कारण उन सूत्रों को यदि अपभ्रंश का भी सूत्र मान लिया जाये तो कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये । न मानने