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धातु साधित संज्ञा
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(1) कुछ ऐसी धातुयें हैं जो कि संस्कृत धातुओं के अर्थों का प्रतिनिधित्व करती हैं और वे धातुयें भी अपभ्रशं में प्रयुक्त होती हैं-हेम० 4/395 - सासानल जाल झलक्किअउ < श्वासानलाज्वाला संतप्तं। यहाँ पर झलक्क का प्रयोग संस्कृत तापय के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
(2) अब्भड वंचिउ वे पयज्ञ < अनुगम्य द्वे पदे । वंचिउ सं० गम् धातु के अर्थ का वाचक है और अब्भड शब्द संस्कृत सम या अनु उपसर्ग का बोधक है।"
(3) हिअइ खुडुक्कइ गोरडी गयणि घुडुक्कइ मेह यहाँ देशी खुडुक्कइ क्रिया संस्कृत शल्यायते के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और घुडुक्कइ संस्कृत के गर्जति के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
(4) निच्चुनें सम्मुह थन्ति < नित्यं यौ सं मुखे तिष्ठतः ।
(5) आवप्पी की भुहंडी चंपिज्जइ अवरेण < यत् पैतृकी भूमिः आक्रम्यतेऽपरेण ।
(6) पर धुढुअइ असारु < परं शब्दायते असारः । धुदुअइ देशी क्रिया का अर्थ ध्वनि करोति है।14
निम्नलिखित धातुयें हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण के आठवें अध्याय के चतुर्थ पाद में उद्धृत अपभ्रंश दोहों की हैं जो कि अपभ्रंश की अपनी हैं। कहीं-कहीं एक ही धातु का विकसित रूप कई प्रकार से पाया जाता है। इस कारण उनका उल्लेख करना हमने आवश्यक समझा है। किन्तु इस धातु पाठ में उन धात् रूपों का उल्लेख नहीं किया गया है जिनका कि पूर्व के काल विभाजन में उल्लेख कर दिया गया है। इतनी धातुयें अवश्य ही परिनिष्ठित अपभ्रंश भाषा में प्रयुक्त रही होंगी। यदि अन्यत्र भी अन्वेषण किया जाये तो अवश्य ही धातु पाठ का सुन्दर संकलन हो सकता है। यहाँ दोहों में आई हुई धातुओं का भी संकलन किया जा रहा