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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
(10) तार प्रा० भा० आo-तृ: अहित्तार (अभिवक्-त), कत्तार (कर-तृ)
अधिकांश प्रा० भा० आ० के प्रत्यय की प्रकृति से हम परिचित हैं, प्रा० भा० आ० के मूल प्रत्यय का भाव (धर-म) म० भा० आ० के पूर्ववर्ती अपभ्रंश में पूर्ण रूप से समाप्त हो गया था। (2) परवर्ती प्रत्यय
निम्नलिखित प्रत्यय परवर्ती रूपों में पाये जाते हैं।
1. अ < प्रा० भा० आ०-क-बाधअ (वृद्धक); संताविय-अ (संतापितक), अहाणअ (आभाणक), तुट्टियअ (त्रुटितक) विसरिअ (विस्मृतक)।
स्वार्थिक अ-विशेषण के रूप में प्रयुक्त-अगल, अपूर, उएड, तुच्छ, निअ, वहिल्ल, अप्पण, एह, जेह, तेवड्ड, महार, केर, सर्वनाम-अप्प, एक्कमेक्क
___ 2. अ < प्रा० भा० आ०-स्त्रीलिंग-गत्तिअ (गात्रिका=गात्री), तरूण, (तरूणी).
3. आक-अक-विशेषण-पराय < पराक, वाराणसीयक या वाणारसीयक-बनारस का रहने वाला।
___4. आर-सोण्णआर (स्वर्ण-कार), सूणार (सूना+कार), अम्हार, हि० हमार, तुम्हार (विशेषण के रूप में), अहगार (अघ-कार) क का ग-हेमचन्द्र 8/4/3961
5. आरी < आरिअ <-कारिक (कार+इक) भिखारी < भिक्खाआरिअ <-भिाक्षाकारिक ।
6. आल < प्रा० भा० आo-आल-आर और आलु प्रत्यय मत् और वत् के अर्थ में काम में लाये जाते हैं-सद्दाल < शब्दवत्, रसाल < रसवत्, णिद्दाल < * निद्रावत, हरिसाल < हर्षवत्, सोहाल, भुक्खाल, धम्धेवालु, णिद्दालु < निद्रालु, ईसालु < ईर्ष्यालु, दआलु < दयालु ।