________________
क्रियापद
375
साहित्यिक प्राकृत पुरुष एकवचन
बहुवचन उत्तम- 1. अमि, ए
आमो,मु,म मध्यम- 2. असि, असे
अह, अध, अथ, इत्था अन्य- 3. अइ, अए, अदि, अन्ति, अन्ते, इरे
अदे, अति। इन प्रत्ययों में 'से' केवल अकारान्त धातुओं से परे होता है। जिन अकारान्त धातुओं के बाद 'मि' प्रत्यय आता है वहाँ विकल्प करके आ होता है-भणामि, पक्ष में भणमि। जिन अकारान्त धातुओं के बाद 'मो' 'मु' एवं 'म' प्रत्यय लगता है वहाँ विकल्प करके 'आ' और 'इ' होता है-भणामो, भणिमो, भणेमो इत्यादि।
इसी प्रकार अकारान्त धातुओं के बाद 'ए' विकल्प करके प्रायः सर्वत्र होता है जैसे-हसमि, हसामि, हसेमि और हसं भी हो सकता है। पैशाची में ति के स्थान पर "तिं' एवं 'ते' होता है। शौरसेनी में 'ति' के स्थान पर 'दि' होता है-होदि, भोदि इत्यादि। 1. उत्तम पुरुष ए० व०
(i) प्राकृत का अमि, आमि रूप प्रा० भा० आ० मि (आमि) से संबद्ध है (दे० पिशेल 8454) जैसे-करोमि, ब्रूमि आदि। आमि, एमि (आ का अ और ए का इ) परवर्ती प्राकृत तथा अपभ्रंश में होता है। प्रा० करेमि, जाणामि, जाणेमि; प्रा०, अपभ्रंश-करिमि, जाणमि, जाणिमि।
(ii) प्रा० भा० आo-म (मध्य में) बहुत कम पाया जाता है-पा०-गच्छम, अप०-याणम (=जाणम; वसु०)।
(iii) अऊँ (केवल परवर्ती अपभ्रंश में) पिशेल (8454) ने इसे रूप के अन्त में लगने वाला माना है-कड्ढउँ < कर्षामि (हे०