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क्रियापद
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जोईअइ < जोईजइ < अप० जोइज्जइ < सं० * द्योत्यते। प्राकृत पैंगलम् में भी ०इय (इअ), इज्ज (ईज) दोनों रूप मिलते हैं। डा० सुनीति कुमार चटर्जी ने बताया है कि आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है :-(1) इज्ज-ईज भाषा वर्ग, जैसे राजस्थानी; (2) ईउव-इ भाषा वर्ग जैसे पंजाबी, पुरानी बँगला, पुरानी कोसली। इस प्रकार अपभ्रंश में रूप होंगे हसीअइ, हसिज्जइ,। अपभ्रंश में प्राकृत 'ईअ' भी होता है (हेम० 8/4/330) जाणिअइ। इनके रूप पूर्ववत कालों की भाँति होंगे:एक वचन
बहु वचन उत्तम पु०-हसिअउँ, हसिज्जउँ हसिअहुँ, हसिज्जहुँ मध्यम पु०-हसिअहि, हसिज्जहि ____ हसिअहु, हसिज्जहु अन्य पु०-हसिअइ, हसिज्जइ हसिअहिँ, हसिज्जहिँ
शेष लकारों के रूप पूर्ववत् होंगे। हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में वर्णित कर्मवाच्य के कुछ उद्धरणः
वण्णिअइ 4/345; जोइज्जउँ (दृश्ये) 4/356; कम्पिज्जइ (कंत्यते)-4/357; छिज्जइ (क्षीयन्ते) 4/360–यहाँ छि में इकार होने के नाते ऐसा प्रतीत होता है कि इज्ज का इ लुप्त हो गया है। बोल्लिअइ (देशी) 4/336; पाविअइ (प्राप्यते) 4/370; विणडिज्जइ (विनाट्यते, देशी), गिलिज्जइ (गिल्यते) 4/388; माणिअइ (मान्यते) 4/412, रुसिज्जइ (रुष्यते), विलिज्जइ (विलीयते), 4/419; जाइज्जइ (यायते), आणिअइ (आनीयते), लज्जिज्जउँ (दोहा के अर्थ की दृष्टि से लज्जयते, रूप की दृष्टि से लज्ज्ये)-4/328; सुमरिज्जइ (स्मयर्ते) 4/434; मिलिज्जइ (मिल्यते); छिज्जइ (क्षीयते) यहाँ भी छि में इ होने के नाते इज्ज के इ का लोप हो गया। उव्वारिज्जइ (उद्वार्यते) अर्थात त्यजते; देज्जइ यहाँ भी इ का लोप है 4/438 किज्जउँ (क्रिये, अर्थ की दृष्टि से क्रियते) यहाँ कृ धातु से कर होकर र का लोप हो गया है।