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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
(शाकुन्तल 120, 10) अपभ्रंश णन्दउ < नन्दतु (हे0 4/422,14); दिज्जउ < दीयताम् और किज्जउ < क्रियताम् (पिंगल 1,81अ), होउ, शौर०, माग०, और ढक्की में भोदु < भवतु होता है। संदेश रासक तथा उक्ति व्यक्ति प्रकरण दोनों में केवल °उ ('अउ) वाले रूप ही मिलते हैं। संदेश रासक 863 भूमिका-प्रो० भयाणी-पृ० 36-होउ, सिज्झउ, जयउ। उक्ति व्यक्ति प्रकरण 74-करउ < कुर्यात्, करोतु वा, देखउ < पश्येत् पश्यतु वा, होउ < भूयात्, भवतु वा (10/3,4); यह आज्ञा वाचक और विध्यर्थक दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। परवर्ती अपभ्रशं में उ म० पु० से प्रभावित दीख पड़ता है। करहु, चड्डहु आदि । अन्य पुरुष ब० व०
__ म० भा० आo में इसका विभक्ति चिह °अन्तु < प्रा० भा० आ० अन्तु है (चलन्तु, पठन्तु)। अपभ्रंश में न्तु ही मिलता है करन्त, होन्तु, पीडन्तु (हेम0 4/385), अप० में इसका हिँ रूप भी मिलता है-लेहि (हेम० 4/387)। अहुँ, अहि और अहु के विषय में विचार पहले किया जा चुका है। यह म० पु० ब० व० का रूप अपभ्रंश में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वर्तमानकाल-.
उत्तम पु० ए० व०-(अ) उँ -ब० व०-(अ) हुँ अन्य पु० ए० व०-(अ) इं -ब० व०-(अ) हिँ
यही आज्ञा वाचक में भी है। हम अन्य पु० ए० व० में (अ) उ और ब० व० में (अ) हुँ पाते हैं। ऐसे बहुत से रूप हैं जो कि वर्तमान काल और आज्ञा वाचक में एक समान हैं (यह प्रा० भा० आ० काल से ही वर्तमान काल का है) उदाहरण-म० पु० ए० व०-अहि,-हि, अस्, म० पु० ब० व०-अह,-अहँ,-अह । इस आज्ञा वाचक म० पु० ने अपना महत्व इस प्रकार अत्यधिक बढ़ा लिया।