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7. इल्ल और उल्ल प्रत्यय भी मत् तथा वत् प्रत्यय के अर्थ में होता है - छइल्ल (= चतुर, विदग्ध ) इसकी उत्पत्ति पिशेल ने * छविल्ल से मानी है जो कि छवी से सम्बन्धित है और इसका संस्कृत रूप छवि है। गामिल्ल (=किसान), गामिल्लिआ (= किसान की स्त्री), सोहिल्ल, कडिल्ल, खडिल्ल, पहिल्ल, कुंभिल्ल, नाम विशेषण । उल्ल का प्रयोग बहुत कम पाया जाता है यह भी उसी अर्थ में प्रयुक्त होता है - मतुप के अर्थ में। पिउल्लअ - प्रिय, मुहुल्ल< मुख, और हथुल्ला < हस्तौ मडउल्ल, कडउल्ल, अहरुल्ल, सुणहुल्ल, हियउल्ल - स्वार्थिक प्रत्यय । अल्ल, अल प्रत्यय भी इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है - एकल्ल < एक, महल्ल < महत्, अन्धल्ल < अन्ध अंधल रूप भी प्रचलित है । नवल्ल < नवल, स्वार्थ प्रत्यय |
रचनात्मक प्रत्यय
8. ल (र) – ल्ल प्रत्यय का प्रयोग स्वार्थ में विशेषण के लिये प्रयुक्त होता है। पंगुल, पक्कल < पक्व, एक्कल, पत्तल, मोक्कल, णग्गल, अग्गल, पियला (= पिअल < प्रिय + लः) हिअला (< हृदय+लः) । 9. अर ( अ ) - आर ( अ ) - मालारी < मालाकारी, चित्तअर चित्रकार, अंधार < अंधकार, विप्पिअआरअ - विप्रिय कारक, दिणअर < दिनकर, सोणार < स्वर्णकार ।
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10. इर < प्रा० भा० आ० - इर, विशेषण - गुहिर < गुहा + वज्जिर < वज्र + सुरोसिर (सुरोष), गग्गिर < गदगद, लम्बिर (लम्ब) जम्पिर < जल्प, भमिर < भ्रमर, उद् + श्वस् का रूप ऊससिर; गव्विर और स्त्री० गव्विरी रूप गर्व से बना है । विवरेर (स्वार्थिक प्रत्यय) पसाहिर, णभिर । ताच्छिल्य के अर्थ में भी इर प्रत्यय का प्रयोग होता है-कीलिरी ( / कृद) = कृदन शील; हिइंसिर (/ हिंस) = हेषणशील, चाविर (/चर्व) - चर्वणशील; कन्दिर (क्रन्द) - चिल्लाना, हल्लिर (√हल्ल - घूमना ) ।
11. इम-भाववाचक संज्ञा विशेषण बनाने में इसका प्रयोग होता है-गहीरिम (गभीर), वंकिम (वक्र), सरिसिम (सदृश), मुणीसिम, पा० - मज्झि< मध्यम ।