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रूप विचार
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तासाम या तेसानां < तेषां + * तानाम्, अप० ताहा < तासाम्। स्त्री ब०व० में पा० तासम् < तासाम्, प्रा० ताण (म्) <* तानाम्, पा० तासानाम् < तासां + * तानाम्, प्रा० तासिम् < तासिं < अप० ताहिं < ताहि।
(6) अधिकरण पुल्लिंग ए० व० में तहिं और तहि रूप होता है इसका विकास त+हि (भिः) से हुआ है। 'हि' करण ब० व० का चिह है, अधिकरण में भी प्रयुक्त हुआ। इसका प्रयोग सन्देश रासक में भी मिलता है :- 'किं तहि दिसि णहु फुरइ जुन्हणिसि णिम्मल चंदह । तहिं का उदाहरण :- 'तहिं तेहइ भङ-घड-निवहि कन्तु पया सइ मग्गु । तेहिं रूप भी मिलता है जो कि प्राकृत तेसिं का विकसित रूप है।
(i) पुं०, नं० ए० व० के रूप का विकास-पा० तम्हि (तस्मिम् भी होता है) अप० तहिं <* तभिम्, तद्रु हेमचन्द्र के अनुसार । (ii) स्त्री० ए० व० पा० तस्सम < तस्याम्, तिस्सम < * तिस्याम तायम < * तायाम, प्रा० ताये, तिये <* ताययि, * तिययि, तिअ * ताया (म) अप० तहिं < ताहिं < * ताभिम्।
(i) पु० नं० ब० व० के रूप पा०, प्रा० तेसु, प्रा०, तेसुम् < * तेषुम्, अप० तहि <* ताभिम् या तेभिम् (ii) स्त्री० पा०, प्रा० तासु < तासु अप० ताहिं।
एत-(एष) एतद् शब्द का रूप। यह (एतद्) शब्द के लिये, अपभ्रंश के तीनों लिंगों में क्रम से कर्ता ओर कर्म के एक वचन में 'एह एहो एहु और बहुवचन में ‘एई रूप होता है।
एक० पुल्लिंग
कर्ता एहो
कर्म " स्त्रीलिंग कर्ता एह एईउ, एहाउ
कर्म " नपुंसक लिंग कर्ता एहु एइइं, एईई, एहाई
बहु०
कर्म "