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रूप विचार
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सोइ और सोउ रूप भी मिलता | सोई का विकास 'स+एव' हुआ है और सोउ का विकास 'सो+उ' से प्रतीत होता है। सौ और सुका विकास क्रम इस प्रकार माना जा सकता है। पालि, प्रा०, अप० सो < सः, अप० सु < सो < सः । स्त्रीलिंग में सा रूप होता है । पा०, प्रा० अप० सा < सा, अप० स - सा नपुंसक त - तत् (तं), पा०, प्रा०, – तं < तत् या तं, अप० तुं या तु रूप होता है। तं रूप भी मिलता है । कुछ आचार्यो के अनुसार द्रम रूप भी मिलता है ( क्रमदीश्वर - जद्रु, तद्रु) ब० व० पु० - पालि, प्रा०, अप० ते < ते, अप० से । स्त्री० - ब० व० पालि-ता < ताः, पा० - तायो (तावो) प्रा० ताओ < * तायः < अप० ताउ० अप० - ति < पुं० ते। ब० व० नपुं० - पा० तानि, प्रा० - ताइं < * ता+इं < अप० ताइं यह प्रथमा और द्वितीया के बहुवचन में होता है ।
(2) द्वि० एक व० पुं० और स्त्रीलिंग में तं रूप होता है। नपुंसक लिंग में भी यही रूप पाया जाता है । पा० प्रा० अप० -तं, अप० तु < तं कर्ता एक वचन सु के सादृश्य पर तु रूप भी होता है । जैसे षष्ठी रूप तासु । (< तां रूप भी पाया जाता है) । डा० तगारे ने इसे नपुंसक रूप के सादृश्य पर बना हुआ रूप माना है। हेमचन्द्र ने किसी विशेष लिंग के विषय में निर्देश नहीं किया है। नपुंसक लिंग के बहुवचन में ताइं रूप होता है। इसी के सादृश्य पर पुल्लिंग में भी ताइं एवं इसका परिवर्तित रूप तें < ते बना । पुल्लिंग ब० वचन पा० प्रा० ते, प्रा० दे < ते < अप० ते 1 स्त्री० पा० ता० < ताः, पा० तायो, प्रा० ताओ < अप० ताउ, प्रा० ते < अप० ति ।
(3) 'तेण तण्हि' करण ए० व० के रूप हैं । तें रूप भी पाया जाता है। संस्कृत तेन का प्राकृत में तेण होता है । उसी का अपभ्रंश में तेण एवं तें रूप पाया जाता है- वडवा नरस्स किं तेण । तें का प्रयोग-तो तें मारिअडेण (हेम०) 'तण्हि' का प्रयोग अवहट्ठ भाषा में पाया जाता है। तहि का विकास डॉ० चाटुर्ज्या के अनुसार 'त+ण् + हि৺=तण्हि मानना चाहिये। यह षष्ठी ब० व० के 'आना (> ण) तथा तृतीया ब० व० - 'भि:'- (> हि) के योग से बना है । इसका 'न्हि' रूप वर्ण रत्नाकर में तथा इसका 'नि' रूप तुलसी में मिलता है। कुछ लोग