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रूप विचार
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का विकारी रूप तझ और तूं है। तूंह (प० आदि च०) < अप० तुहु, * तुहुह; अप० तुह < * तुस (..), तुज्झ तुम < तुभ्यम् । डा० एस. के. सेन के अनुसार तुज्झु या तुज्झ का विकास क्रम इस तरह से माना जा सकता है :- पालि तुम्हम्, प्रा० तुम्ह, तुम्हो तुम्हे, तुम्म, < * तुष्मम, * तुष्मह, * तुष्मत, पालि-तुह्यम्, प्रा० तुज्झ, तुय्ह; अप० तुज्झ, तुज्झु < * तुह्य-(मह्यं के सादृश्य पर); तुज्झह <* तुह्य - + - स या सस (सम्बन्ध कारक)। इसके अतिरिक्त प्राकृत और अपभ्रंश में यह रूप भी हो सकता है :- तुम (म्) < तुभ्य (म्)। एक तुध्र रूप भी अपभ्रंश में प्रचलित है। संभवतः यह किसी बोली का रूप है जो कि अपभ्रंश में प्रचलित हो गया। प्राकृत पैगलम् 1,123 – तुम्ह रूप भी मिलता है।
पंचमी और सम्बन्ध कारक ब० व० में तुम्हहँ रूप होता है, संस्कृत * तुष्माकं के सादृश्य पर है। तुम्ह, तुम्हा, तुम्हाणं रूप भी मिलता है। इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार की जा सकती है-अप० तुम्हहं-पालि-तुम्हाकम् < * तुष्माकम् = युष्माकम्; प्रा० तुम्हाण (म्) < * तुष्माणाम् =* युष्माणां = युष्माकं का विकास है। अप०-तुम्हहा (पंचमी) <* तुष्माणम् । पालि-तुम्हम् प्रा० तुम्ह (म्), अप० तुम्ह, तुभम् (पंचमी में भी) < * तुष्मत् या तुष्मम् । इसी से मराठी में तुम्हि-तुम्हा, गुजराती में तमे, व्रज में तुम्हौ और खड़ी बोली में तुम्ह (तुम्हारा, तुम्हारे, तुम्हारी) से सम्बद्ध है। पुरानी राजस्थानी में-तुम्ह, तुम्हाँ, तुम्हो आदि निर्गत हुआ है। प्राकृत पैंगलम् 4 में तोहर रूप भी मिलता है। जिसका विकास क्रम तो + कर >* तो-अर > तोहर के क्रम से हुआ है। उक्ति व्यक्ति प्रकरण में तोर रूप मिलता है। (तोर भाई-19-30) पिशेल के अनुसार * तोम्हार > तोहार > तोहर होता है। निर्देशवाहक-वह = (तत्) पुल्लिंगएकवचन
बहुवचन सो, सु,स, कर्म
तेण, तइं, तें, तिं तेहिं, ताहं तेहि
कर्ता
ते
करण०