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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
व्रजभाषा का ब० व० चिह न भी इससे जोड़ते हैं। इन रूपों का विकास क्रम इस प्रकार माना जा सकता है
(i) करण ए० व० पुल्लिंग, नपुंसक लिंग-पा० तेन, प्रा० तेण (म) अप० तिण < तेण, ति, ते, तें < सं० तेन, ऋग्वेद तेना। तइँ रूप भी मिलता है।
(i) स्त्रीलिंग ए० व०-पा० ताय, प्रा० ताए <* ताय = तया, < अप० ताए, तए। प्रा० ताए, तिअ <* तीया, * तीयई < अप० तिए, तइं रूप पुल्लिंग रूप के सादृश्य पर बना है। ब० व० पुल्लिंग में तेहिं रूप होता है। पा०, प्रा० तेहि < तेभिः (वैदिक), प्रा० तेहिं < * तेभिम < अप० तेहिं, तेहि।
(iii) स्त्रीलिंग पा०, प्रा० तहि < तभिः < अप० तेहि पुल्लिंग ब० व० के सादृश्य पर | प्रा० ताहिं <* ताभिं < अप० ताहँ पुल्लिंग का एक रूप।
(4) अपादान पुल्लिंग एक वचन में डसि विभक्ति को हां होकर तहाँ रूप होता है-'तहाँ होन्तउ आगदो', पर आजकल हिन्दी खड़ी बोली में यह अव्यय के रूप में प्रयुक्त होता है। तम्हा का विकसित रूप तहाँ है। पालि तम्हा (तस्मा भी होता है) < तस्मात्, प्रा० तम्हा < अप० तहाँ, तम्हा । पा० ततो, प्रा० त (द) ओ > प्रा०, अप० तओ < तउ < ततः। स्त्री० ए० व०-पा० ताय, ताओ < * तायह अप० तहे।
(5) सम्बन्ध पुं० ए० व० में तसु, तासु और तस्सु रूप होता है। इसका विकास क्रम इस प्रकार होगा 'तस्य > तस्स > तस्स > तस > तासु । उकार की प्रवृत्ति अपभ्रंश की विशेषता है। ताहो और तहो रूप भी मिलता है। यह अप० तासु, ताहो <* तासः का रूप है। इसी तहो के आधार पर पंचमी एवं षष्ठी के बहुवचन में तहु रूप होता है। स्त्री० में तहे, ताहि और तिह रूप होता है। पा० तस्सा < तस्याः, पा०, प्रा० तिस्सा < * तिस्याः अर्धमागधी तिसे < * तिसयइ, अप० ताहे, तहे ताहि, तिह <* तास्यइ, तासु < * तासः या * तास्यः ।
___पु० ब० व० में संज्ञा रूप की भाँति ताहँ और तहहं रूप भी होता है (जे पर विट्ठा ताहँ) यह प्राकृत तास या तासाम् का विकसित रूप है। पा०