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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
सम्प्र०-सम्बन्ध
तह तहु
अपादान
तहे, तउ तहि, तहिं
अधि०
ताहिं
नपुंसक लिंग
बहु०
एक० तुं, तु
कर्म
कर्ता
तं, त्रं शेष रूप पुल्लिंग के समान होंगे स्त्रीलिंग
एक०
बहु०
कर्ता० सा, स
ताउ, ति कर्म तं
ताउ करण
तइं, तिए, ताए, तए तेहि अपा० ताहं, तहे
ताहिं सम्ब० तिह, ताहि, तहे, ताहि अधि० तहि, तहिं
ताहिं सामान्यतया त (स) शब्द का रूप प्रा० भा० आ० की ही तरह म० भा० आ० में भी प्रचलित थे। नपुंसक लिंग का रूप प्र० और द्वि० को छोड़ कर अन्य रूप पुल्लिंग की तरह चलते हैं।
(1) 'स, सो, सा, सु, पुल्लिंग रूप है, सा स्त्रीलिंग रूप, प्राकृत और अपभ्रंश में सो रूप प्रचलित है। अपभ्रंश में सु रूप भी मिलता है। प्राकृत पैंगलम् में सो रूप ही मिलता है। हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में सो रूप भी उपलब्ध होता है। सो वरिसुक्खु पइट्ठणवि (8/4/340)। सु रूप भी मिलता है। बालि उ गलइ सु झुम्पडा (हेम०)। यह दोनों एक वचन का रूप है। ब० वचन में ते और ति रूप होता है-"ते णविदूर गणन्ति (हेम०)।