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अव्यय
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(< एकाइक) ऍक्के क्कम (<* एकैकम) एक्कमेक्क (एकैक) एक्कै (एकाकिनी) न० भा० आ० का एक अप० एक्क से व्युत्पन्न है । एक्क में द्वित्व क की प्रवृत्ति संभवतः म० भा० आ० के बोलने वालों की विशेषता है जो कि प्रा० भा० आ० एतद और एक के बीच की विशिष्टता है ।
(2) कर्ता और कर्म कारक में दो, दुवे, बे बोला जाता है । नपुंसक लिंग में दोण्णि, दुण्णि, बेण्णि और बिण्णि होता है। दो < द्वौ और दुवे तथा बे < द्वे (नंपुसक) पुराने द्विवचन हैं। श्री पिशेल का (8436) कहना है कि इसकी रूपावली बहुवचन की भाँति चलती है और इसी भाँति काम में आती थी ।
द्व (द्वि) के मुख्य दो प्रकार के रूप होते थे (1) दुव (जैसा कि ऋग्वेद में दुवा होता है) और (2) दूसरा द्व है । म० भा० आ० में दोनों प्रकार की प्रक्रिया दीखती है । दु (व) एं, दु (व) इ, दु और एक खण्ड का रूप इस प्रकार होगा - द्वो, द्वे, द्वि, दो, वे (< * द्वे) आदि । कर्ता और कर्म कारक प्रा० (पु०, नपुं०) दो, दु, हैं, वे (नपुं०) दोपि (ण) वेण्णि, विण्णि, अप० वि, वेणि (ण), वेन (न) विन्नि । तृती० प्रा० दुवेहिं, (शौ०) दोहि (म्), वेहि, अप० वेहिं, विहिं, सम्ब० प्रा० दोण्णं, दोण्हं, वेण्हं, अप० विहुं, वेण्ण, अधि० - प्रा० दुवेसु अप० वेहिं । संस्कृत द्वा के स्थान पर अप० में बा होता है । परवर्ती अपभ्रंश में भी निम्नलिखित रूप पाये जाते हैं-दु, दुइ, दुद् दुइ, (< द्वो, द्वौ ) दुअउ दो दुहु बि, बिण बिणो बिहु बीहा बे समस्त पद में - दुक्कल (< दु-बि < द्वौ, द्वि) ।
( 3 ) तृतीया का कर्ता और कर्म कारक पुल्लिंग और स्त्रीलिंग का रूप तओ < त्रयः है, नपुंसक लिंग में तिण्णि < त्रीणि है, यह ण्ण सम्बन्ध कारक के रूप तिण्णं की नकल पर है। इसके रूप बिना किसी प्रकार के भेद के तीनों लिंगों में काम में आते हैं । अप० में दो तिण्णि वि.< द्वौ त्रयो पि और तिण्णि रेहाइं < तिस्रः रेखाः मिलते हैं । करण तीहिं है । इस तरह अपभ्रंश में तिअ, ति, तिज्जे, तिणि, तिण्णि, तिण्णिआ, तिण्ण, तिण्णे, ती, तिअ, तीणि, अधिकरण कारक ए० ब० रूप 'ती' (< त्रि, त्रीणि (त्रि) । प्रा० भा० आ० त्रीणि, पै० तीनि प्रा० तिण्णि, हि० - तीन, बंगाली, नेपाली - तिन, पंजाबी तिन्न । प्रा० भा० आ०