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अव्यय
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(1) रीति वाचक अव्यय
संस्कृत कथं, यथा, तथा के स्थान पर अपभ्रंश में विकल्प करके (हे0 8/4/401) कथं का केम, किम, किह तथा किध रूप होता है। अपभ्रंश में 'म' को विकल्प से अनुनासिक व (हे० 8/4/397) भी होता है। किवँ एवं केवँ रूप भी होता है। इसी प्रकार यथा का जेम, जेव, जिम, जिव, जिह तथा जिध होगा। प्राकृत एवं अपभ्रंश में आदि 'य' को प्रायः ज हो जाता है। तथा से तेम, तेवँ, तिम, तिवँ तिह तथा तिध रूप होगा। इसी का हिन्दी रूप क्यों, यों, त्यों इत्यादि रूप होता
संस्कृत के यादृश, तादृश, कीदृश एवं ईदृश शब्दों के आदि अक्षर को छोड़ कर शेष को 'ए' आदेश होता है (हेम० 8/4/402)। यादृश का जेहु, तादृश का तेहु एवं ईदृश का एहु रूप होता है और कीदृश का केहु होता है।
विशेषण की तरह ‘वड्ढ' और 'वडु, प्रत्यय लगाकर भी प्रयोग बनता है-जेवडु, तेवडु, केवडु, एवडु, जेवड्ढ, तेवड्ड, केवड्ढ एवड्ढ । पिशेल' ने एवडु और एवड्ड की व्युत्पत्ति * अयवड्डू से मानी है इसी प्रकार * कियदवृद्ध >* के-वृद्ध > केवड्ड, केवडु रूप की प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया विशेषणात्मक रूपों की है।
___ न० भा० आ० में इसका रूप-हि० इतना, मराठी-इतका (< इयत्); हिन्दी कितना, म०-किती (< कियत)। इसी प्रकार मराठी में एवढ़ा, केवढ़ा, तेवढ़ा आदि रूप होते हैं।
एह रूप के साथ साथ 'अइस रूप भी पाया जाता है। हेम० 8/4/403- जइसो, कइसो, अइसो इत्यादि। इसी का हिन्दी रूपान्तर जैसा, कैसा, एवं ऐसा रूप बना है। 'जइसो घडन्दी प्रयावदी।
(2) स्थान वाचक
(क) संस्कृत यत्र एवं तत्र के स्थान पर विकल्प करके एत्थु एवं अत्तु आदेश होता है-हे0 8/4/404 । इत्थु, एत्थु, जित्थु, जेत्थु तित्थु, तेत्थु, कित्थु, केथ्थु आदि-"जेत्थु वि तेत्थु वि एत्थु जगि भण तो