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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
लेने पर सभी शब्द इस कठघरे में नहीं आ पाते। कुछ ऐसे शब्द हैं जिनकी व्युत्पत्ति संस्कृत शब्दों से नहीं की जा सकती। अतः उन शब्दों की उत्पत्ति ग्रामीण शब्दों से ही संभव हो सकती है। हार्नले महोदय का कहना है कि जिस तरीके से लोगों ने देशी की व्युत्पत्ति का अनुमान किया है वह वस्तुतः अधिक स्पष्ट नहीं है। वास्तव में वे शब्द या तो आदिवासियों से लिए गए हैं या संभवतः परवर्ती संस्कृत के समय में ग्रामीण आर्यों की देन है (बीम्स, पृ० 12)। यह भी संभव हो सकता है कि जनसाधारण के द्वारा अज्ञानवश संस्कृत के शब्द इतने अधिक बिगाड़ दिए गए हों कि उनकी व्युत्पत्ति का पता लगाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव है। हार्नले साहब ने अंतिम कारण को बहुत संभव माना है। यथार्थतः इस विषय पर विद्वानों की भावना से भी निर्णय किया जा सकता है। आधुनिक अनुसंधान ने बहुत से देशी शब्दों का पता लगा लिया है। देशी नाममाला में प्रयुक्त बहुत से देशी शब्दों की व्युत्पत्ति प्रकृतिप्रत्यय से की जा चुकी है। तब इस विषय पर प्रश्न उठ खड़ा होता है कि वे शब्द आर्यों के हैं कि नहीं ? इस समय इस प्रश्न का निर्माण करना बड़ा कठिन है। कारण, कोई भी शब्द संस्कृत या प्राकृत का होते हुए यह आवश्यक नहीं है कि वह आर्यों का ही हो क्योंकि भारतीय आर्यों में आर्येतर शब्द विराजमान रहने पर भी वे शब्द इस प्रकार सँवार सुधार लिए गए कि अब उनका पता लगाना कठिन सा हो गया है। फिर भी संस्कृत में बहुत से ऐसे शब्द हैं जो पैशाची या अपभ्रंश के कहे जा सकते हैं।
सर आ० जी० भाडारकर-0 ने देशज पर विचार करते हुए बताया है कि जो शब्द संस्कृत से व्युत्पन्न नहीं हो पाता तथा जो दूसरे उपायों द्वारा उदाहरण में दिया जा सकता है वह देशज है। पुनः आगे उन्होंने अपना दृढ़ विश्वास प्रकट करते हुए कहा कि प्राकृत में तथा अपभ्रंश में जो देशी शब्दों का बाहुल्य है वह उन आदिवासियों के यहाँ से आया हुआ है जिन्हें जीतकर आर्यों ने पराधीन बना लिया था। इसके विपरीत डॉ० पी० डी० गुणे) का कहना है कि पाइयलच्छी नाममाला और देशी नाममाला में जो देशी शब्द संगृहीत है उनमें से