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ध्वनि-विचार
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(ग) विशिष्ट सावर्ण्य भाव (Special Assimilation)
सावर्ण्य भाव में संयुक्त व्यजंन के पूर्व दीर्घ स्वर हो तो इस्व स्वर हो जाता है। (2) असावर्ण्य भाव (Disassimilation)
(क) संयुक्त व्यंजन को अगर असंयुक्त करना हो तो पूर्व के हस्व स्वर को दीर्घ कर दिया जाता है :-सहास < सहस्स < सहस्र। यह उदाहरण प्रायः अपभ्रंश में ही मिलता है, प्राकृत में बहुत कम।
(ख) संयुक्त व्यंजन के संयोग को दूर करने के लिए अनुस्वार स्वर को ह्रस्व ही रहने दिया जाता है :-मंत < मत्त हे० 8/2/921
(क) पर सावर्ण्य भाव (Regressive Assimilation)
नाना वर्गों के संयुक्त व्यंजन की शेष ध्वनि में, संयुक्त व्यंजन में से पहला व्यंजन दूसरे व्यंजन का रूप धारण कर उससे मिल जाता
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क् + त = त्त-जुत्त < युक्त, रत्त < रक्त, आसत्त < आसक्त, भत्ति < भक्ति, मोत्तिय < मौक्तिक ।
क् + प = प्प-वप्पइराअ < वाक्पतिराज ग् + ध = द्ध-दुद्ध < दुग्ध, मुद्ध < मुग्ध, सिणिद्ध < स्निग्ध । ग् + भ = भ-पब्भार < प्रग्भार । ट् + क = क्क-छक्क < षट्क । ट् + त = त्त-छत्तीस < षट्त्रिंशत् । ट् + प-छप्पय < षट्पद, छप्पण < * षट्पंचत् । ट् + फ = प्फ-कप्फल < कट्फल, ड् + ग = ग्ग-खग्ग < खड्ग, छग्गुण < षड्गुण । ड़ + ज = ज्ज-सज्जो < षड्ज, छज्जीव < षड्जीव । ड् + द = ६-छद्दिसिं < षड्दिशम् । ड् + भ = भ-छब्भुअ < षड्भुज ।
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