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शब्दान्तर्गत संयुक्त व्यंजन
हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
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शब्दान्तर्गत संयुक्त व्यंजन के अपभ्रंश में निम्नलिखित उदाहरण
मिलते हैं :
=
वृत्त,
(1) एक प्रकार के संयुक्त व्यंजन का उदाहरण है मुत्त, मुक्क< मुक्त, खग्ग < खड्ग मो त्तिय < मौक्तिक, नक्कंचर < नक्तंचर, सित्थ < सिक्थ, क + प = प्प वप्पइराअ वाक्पतिराज, दुद्ध < दुग्ध, मुद्ध < मुग्ध, ट + त = त्त - छत्तीसा < षट्त्रिंशत्, त् + फ = प्फ-उप्फुल्ल < उत्फुल्ल, द् + ग = ग्ग-पोग्गल < पुद्गल, द् त्त - सुत्त < सुप्त आदि । वर्ग के प्रथम व्यंजन का द्वितीय व्यंजन सोष्म व्यंजन संयुक्त व्यंजन होता अक्खर, वग्घ, अच्छ, वज्झ, अट्ठ, अड्ठ, अत्थ, अद्घ, पुप्फ, सभाव आदि
+ भ = ब्भ सब्भाव < सद्भाव, प् + त =
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है
(2) ल्ह, म्ह, ण्ह का उदाहरण = कण्ह, पम्ह पल्हत्थ (सि० हे० 8/4/200) अपभ्रंश में ल्ह का उदाहरण नहीं के बराबर है ।
(3) व्यंजन र ( हे० 8 /4/398 - 399 ) का उदाहरण केवल बोलियों में ही पाया जाता होगा। हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में जो संयुक्त रकार का उदाहरण मिलता है, वह वस्तुतः प्रादेशिक बोली का ही प्रभाव है ।
(4) अनुनासिक व्यंजन - अनुनासिक व्यंजन के पूर्व स्वर पर प्रायः अनुस्वार पाया जाता है। सिंचइ, छंमुह के रूप छम्मुह आदि । संस्कृत पद्धति की प्रकृति के अनुसार अपभ्रंश में भी निम्नलिखित प्रक्रियायें होती हैं :
(1) सावण्य भाव (Assimilation)
(क) पूर्व सावर्ण्य भाव (Progressive Assimilation)
(ख) पर सावर्ण्य भाव ( Regressive Assimilation)