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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
तें, ते- राम ते अधिक राम कर दासा (मानस)
जल समूह बरसत अँखियन तें । (सूर०) तें का थें प्रयोग भी पाया जाता है :नाद ही थें पाइए (गोरख)
कहाँ थें आया (कबीर) (3) अपादान परसर्ग-होन्तउ
पी० एल० वैद्य ने इस होन्तउ परसर्ग का अर्थ भवान किया है। (जहाँ होन्तउ आगदो, कहाँ होन्तउ आगदो = यस्मात् भवान् आगतः कस्मात् भवान् आगतः-हे0 8/4/355) और यह वर्तमान कृदन्त में प्रयुक्त हुआ है। इसकी व्युत्पत्ति की कल्पना हो < सं० भू (हे० 8/3/180) शतृ कृदन्त रूप होन्त + स्वार्थिक प्रत्यय क > अ > उ से की जाती है। इसका शाब्दिक अर्थ होते हुए होना चाहिए। हेमचन्द्र ने होन्तउ का प्रयोग अपने कई सूत्रों में किया है। सर्वत्र पंचमी विभक्ति के योग में प्रयुक्त हुआ है=8/4/372 तउ होन्तउ आगदो/तुज्झ होन्तउ आगदो/8/4/373 = तुम्हहं होन्तउ आगदो/8/4/379 = मह होन्तउ गदो। मज्झु होन्तउ गदो/8/4/380 = अम्हहं होन्तउ आगदो।
हेमचन्द्र से पहले भी होन्तउ का प्रयोग होता था भविसत्त कहा :- तावसु पुव्व जम्मि हउ होन्तओ।
कोसिउ णामेमि नयरि वसन्तओ 88/8 णय कुमार चरिउ:- तहिं होन्तउ सुंदरु णीसरिउ। 6/7
तहिं होतउ पल्लट्टिउ सवरु। 6/8 स्वयंभू चरिउ :- आयउ कुन्दिण-णयरहो होन्तउ। 9/2/75 जसहर चरिउ :- हउं विवरहो होन्तउ णीसरिउ। 3/3/17 सनत कुमार चरिउ :- अहा होन्तु (कि) न सक्कविउ।