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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
बहुवचन में पुत्त + आम् विभक्ति को हं20 होकर रूप पुत्तहं होगा। संस्कृत में पुत्राणाम्, प्राकृत में पुत्ताण तथा पुत्ताणं होता है। अपभ्रंश हं की रचना संभवतः पंचमी हं के तुक पर की गयी हो। या प्राकृत णं का अपभ्रंश में केवल अनुस्वार अवशिष्ट बचा और महाप्राण ह की श्रुति हुई।
(छ) अधिकरण सप्तमी एक वचन में पुत्त + डि के स्थान पर ए21 तथा इ आदेश होकर पुत्ते, पुत्ति रूप होता है। सं० पुत्रे, प्राकृत में पुत्ते, पुत्तम्मि रूप बनता है। अपभ्रंश में इसी म्मि का उच्चारण सौकर्य के कारण इ रूप बना। इसका विकसित रूप इस प्रकार हो सकता है-सं० पुत्रे > प्रा० पुत्ते, पुत्तम्मि > अप० पुत्ते > पुत्ति ।
बहुवचन में पुत्त + सुप् विभक्ति के स्थान पर हिं आदेश होकर पुत्तहिं रूप बनता है। सं० पुत्रेषु > प्रा० पुत्तेसु और पुत्तेसुं होता है। अपभ्रंश में सुं का हु होना चाहिये था, पर तृतीया का सप्तमी के साथ संबन्ध होने के कारण यहाँ सु का हिं रूप बना । संस्कृत सप्तमी एक वचन स्मिन् से रिम > मि से हिं की कल्पना की जा सकती है।
(ज) सम्बोधन के एक वचन में सारा रूप कर्ता कारक एक वचन की भाँति होता है, पुत्त, पुत्ता पुत्तु । बहुवचन में भी प्रथमा की तरह रूप होता है। एक अधिक रूप 'हो' भी होता है-पुत्ता, पुत्ता, पुत्तहो । अकारान्त पुल्लिंग शब्दों का रूप एक वचन
बहुवचन प्रथ०-पुत्तु, पुत्तो, पुत्त, पुत्ता पुत्त, पुत्ता द्वि०-पुत्तु, पुत्तो, पुत्त, पुत्ता पुत्त, पुत्ता तृ०-पुत्तेण, पुत्ते, पुत्ते पुत्तेहिं, पुत्तहि चतु०-० पञ्च०-पुत्तहे, पुत्तहु
पुत्तहुँ